सार

उत्तर प्रदेश में लगातार पुलिसकर्मियों के सुसाइड करने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में लगातार पुलिसकर्मियों के सुसाइड करने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। बीते 2 अगस्त को लखनऊ के जानकीपुरम में एएसआई धर्मेन्द्र कुमार ने अपने रिश्तेदार के घर फांसी लगाकर जान दे दी। इससे पहले भी कई दरोगा, सिपाही और उच्चाधिकारी सुसाइड का रास्ता चुन चुके हैं। इसको लेकर asianetnews.com की हिंदी टीम ने यूपी के पूर्व डीजीपी के.एल गुप्ता और ए.के जैन से बात की। उनसे यह जानने की कोशिश की कि आखिर क्या कारण है कि प्रदेश के पुलिसकर्मियों इतना डिप्रेशन में आ जाते हैं ​और मौत का रास्ता चुन लेते हैं। 


आइए पहले डालते हैं बीती कुछ घटनाओं पर एक नजर

16 अक्टूबर 2019- गाजियाबाद में कविनगर थाना क्षेत्र के संजयनगर में दरोगा मधुप सिंह ने अपने घर पर गोली मारकर आत्महत्या कर ली। मधुप बागपत के बलेनी थाना में एसएसआई के पद पर तैनात थे। इसी दिन बिजनौर में कलेक्ट्रेट में ड्यूटी पर तैनात सिपाही अंकुर राणा ने अपनी सरकारी रायफल से गोली मारकर आत्महत्या कर ली। वह बागपत जिला के निर्पुडा का रहने वाला था।

26 अक्टूबर 2019- पटियाली क्षेत्र में दरियागंज चौकी पर तैनात उपनिरीक्षक देवी सिंह ने अपनी सरकारी रिवाल्वर से खुद को गोली मार ली। देवी सिंह मथुरा जिले के रहने वाले थे।

10 जुलाई 2019- अमरोहा जिले के थाना मंडी धनौरा में तैनात सिपाही पंकज बालियान ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उसकी जेब से सुसाइड नोट मिला था। सुसाइड नोट में सिपाही ने पुलिस ड्यूटी सिस्टम को खुद की मौत का जिम्मेदार ठहराया था।

29 मई 2019- अपर पुलिस अधीक्षक राजेश साहनी ने आत्महत्या कर ली थी। यूपी पुलिस के पीपीएस अधिकारी और आतंकवाद निरोधक दस्ता (यूपी एटीएस) में एएसपी के पद पर तैनात राजेश साहनी ने अज्ञात कारणों से अपने ऑफिस में गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी।

14 अगस्त 2019- फरीदाबाद के डीसीपी विक्रम कपूर ने अपने घर पर सर्विस रिवाल्वर से खुद को गोली मार आत्महत्या कर ली थी।

ऐसे अनगिनत केस हैं, जिनमें पुलिसकर्मियों के आत्महत्या के मामले सामने आए। 


पुलिसकर्मी किन परिस्थितियों में चुनते हैं मौत
पूर्व डीजीपी ए.के जैन ने बताया, यूपी पुलिस की कार्यप्रणाली पुराने समय से ही वैसे ही चली आ रही जिसमें अभी भी बहुत ज्यादा सुधार नहीं हो सके हैं। पुलिसकर्मियों को 16 से 18 घंटे काम करना पड़ता है। वो अपनी फैमिली को समय नहीं दे पते। यहां तक की उनको वीकली ऑफ भी नहीं मिलता। छुट्टी मांग नहीं पाते, क्योंकि हमेशा लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति बनी रहती है। कभी भी ट्रान्सफर हो जाता है, हमेशा दबाव बना रहता है। चाहे वह काम का दबाव हो या फिर अधिकारियों का हर हाल में काम करना पड़ता है। 

के.एल गुप्ता बताते हैं कि विदेशों में ऐसा नहीं है। वहां सिर्फ आठ घंटे की पुलिस ड्यूटी रहती है। फिर शिफ्ट बदल जाती है, जबकि हमारे यहां ऐसा नहीं है। ज्यादातर तबादले एसपी और एमएलए के दबाव में होते हैं।

क्या करने से होगा पुलिस सिस्टम में सुधार
के.एल गुप्ता बताते हैं, पुलिस में आवासीय सुविधाओं की काफी कठिनाइयां हैं। पुलिसकर्मियों को बैरेक में रहना पड़ता है, जहां लाइट, पंखा, बिजली की सुविधाएं सुचारू रूप में नहीं मिल पाती। राजनितिक और अधिकारियों के दबाव को कम किया जाए। यूपी पुलिस में बजट बहुत कम है, इसको बढ़ाया जाना चाहिए, क्योंकि यूपी का पुलिस डिपार्टमेंट सिर्फ तनख्वाह ही देता है। 

पूर्व डीजीपी ए.के जैन बताते हैं, पुलिस सुधार को लेकर राजनितिक लोग ज्यादा रूचि नहीं लेते, जिसकी वजह से समस्याएं कम नहीं हो रही। इसके अलावा महकमे में नई भर्तियां की जाए। पुलिसकर्मियों को थोड़ा रेस्ट भी दिया जाए। इन्हीं सब तनाव और दबाव के चलते आत्महत्याएं हो रही हैं। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि छुट्टी न मिलने पर पुलिसकर्मी अपने अधिकारी पर भी गोली चला देते हैं। हर जिले में एक साइक्लोजिस्ट को रखना चाहिए। जिन पुलिसकर्मियों का मानसिक संतुलन ठीक नहीं है, उनको चिन्हित करके ट्रीटमेंट देना चाहिए। इसके साथ ही मोटिवेशन की भी काफी जरूरत है। तभी इन आत्महत्याओं पर अंकुश लगाया जा सकेगा।