सार

कांवड़ यात्रा के दौरान गाजियाबाद से पैदल एक युवक हरिद्वार पहुंचा। हैरान करने वाली बात है कि वह कांवड़ में माता-पिता को लेकर पहुंचा। इस दौरान उनकी आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी। 

हरिद्वार: कांवड़ मेला यात्रा को लेकर भक्तों में उत्साह दिखाई पड़ रहा है। इस धर्म, आस्था, श्रद्धा, विश्वास और भक्ति की यात्रा को लेकर भारी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। श्रावण मास में दो सप्ताह तक चलने वाली यात्रा में भक्त धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कांवड़ में गंगा जल भरकर अपने गंतव्य तक जाते हैं। हालांकि इस बार यहां अलग ही नजारा देखने को मिला। गाजियाबाद निवासी विकास गहलोत अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठलकर पैदल ही हरिद्वार पहुंचे। 

पैदल तय किया सैंकड़ों किलोमीटर का सफर
अपना दर्द माता-पिता से छिपाने के लिए उन्होंने उनकी आंखों पर पट्टी भी बांध दी। गर्मी के मौसम में सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल तय कर भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए जिस तरह से पहुंचे उसकी सभी तारीफ कर रहे हैं। विकास गहलोत का कहना है कि उनके माता-पिता ने कांवड़ यात्रा की इच्छा जताई थी। हालांकि उनकी(माता-पिता) की उम्र इस बात के लिए तैयार नहीं थी की वह पैदल जा सके। जिसके बाद विकास ने मन बनाकर दृढ़ निश्चय कर इस तरह से माता पिता को यात्रा करवाने का संकल्प लिया। 

इन नियमों का करना होता है पालन
आपको बता दें कि कांवड़ ले जाने के दौरान कई तरह की धार्मिक मान्यताओं का विशेष तौर पर ख्याल रखा जाता है। खासकर शुभ मुहुर्त में ही कांवड़ को गंगा जल से स्नान करवाकर पूजा अर्चना के बाद उसे उठाया जाता है। कांवड़ ले जाते वक्त पूर्ण रूप से सात्विक और ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है। इसी के साथ यात्रा में गुलर के पेड़ का विशेष निषेध माना जाता है। बिना किसी को पैसे दिए यात्रा में कोई भी सामान नहीं लिया जाता। भोजन आदि का भी पैसा दिया जाता है और मुफ्त में कोई सेवा नहीं ली जाती। मार्ग में शौच आदि से निवृत्त होकर पूर्ण शुद्धि के साथ ही कांवड़ को पुनः उठाया जाता है। कांवड़ को एक बार कंधे पर उठाने के बाद उसे जमीन पर नहीं रखा जाता है। विश्राम के दौरान या लघु शंका, शौच आदि कर्मों के लिए भी कांवड़ को स्टैंड पर ही रखा जाता है। मार्ग में शिव का गुणगान किया जाता है और किसी को भी अपशब्द आदि के प्रयोग से बचा जाता है। यात्रा में मांस, मदिरा और अन्य मद्य पदार्थों का उपयोग भी निषेध होता है। 

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