सार
केशव मौर्य इकलौते ऐसे नेता थे जिसने प्रधानामंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लगभग सभी रैलियों में उनके साथ मंच साझा किया और पार्टी को जिताने में अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि प्रचंड जीत के बाद भी केशव मौर्य की जगह योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और केशव उप मुख्यमंत्री। जानकारों की मानें तो पार्टी के इस फैसले से कार्यकर्ताओं खासकर ओबीसी वोटर्स को काफी निराशा हुई।
पंकज श्रीवास्तव
लखनऊ: 2017 में यूपी में प्रचंड बहुमत से बीजेपी की सरकार बनी। जिसने भी इस चुनाव को नजदीक से देखा और समझा होगा वह यह आसानी से समझ जाएगा कि उस चुनाव में केशव प्रसाद मौर्य की क्या भूमिका थी। केशव मौर्य इकलौते ऐसे नेता थे जिसने प्रधानामंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लगभग सभी रैलियों में उनके साथ मंच साझा किया और पार्टी को जिताने में अहम भूमिका निभाई थी। हालांकि प्रचंड जीत के बाद भी केशव मौर्य की जगह योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और केशव उप मुख्यमंत्री। जानकारों की मानें तो पार्टी के इस फैसले से कार्यकर्ताओं खासकर ओबीसी वोटर्स को काफी निराशा हुई।
चुनाव से ठीक पहले केशव मौर्य का कद बढ़ा
इस फैसले का 2017 में असर भले ही न दिखा हो पर 2022 के चुनाव के ठीक पहले जिस तरह बीजेपी से ओबीसी नेताओं ने पार्टी से दूरी बनानी शुरू की यह बीजेपी के लिए चिंताजनक साबित होने लगा। देर से ही सही बीजेपी संगठन को केशव मौर्य और ओबीसी वोटर्स को साधने की सुध आई। पार्टी से छोड़ रहे ओबीसी और दलित नेताओं को मनाने की जिम्मेदारी केशव मौर्य को दी गई, हालांकि केशव के कहने पर भले ही कोई वापस नहीं आया पर यह एक मैसेज तो चला ही गया कि बीजेपी में ओबीसी हाशिए पर है।
केशव के पास पिछड़ों को जोड़े रखने की जिम्मेदारी
स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान सहित कुछ अन्य ओबीसी नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद बीजेपी के पास ओबीसी वोटर्स के छिटकने का खतरा दिखने लगा है। बीजेपी इस खतरे से निपटने के लिए केशव मौर्य को फ्रंटफुट पर लाते हुए अगर उन्हें सीएम पद का प्रत्याशी भी घोषित कर दे तो कोई बड़ी बात नहीं है। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने केशव प्रसाद मौर्य को चेहरा बनाकर पिछड़ों को जोड़ा था। 2022 में भी इसी रणनीति के तहत केशव प्रसाद मौर्य को आगे किया गया है। बताया जा रहा है उन्हें 2017 के विधानसभा चुनावों में जिस भूमिका में रखा गया था, उसी भूमिका में एक बार फिर से पिछड़ों के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर सामने रखा जाएगा। कोशिश होगी कि इस वर्ग में एक बार फिर से वही विश्वास बने ताकि बीजेपी की सत्ता में वापसी हो सके।
2024 में केंद्र में बीजेपी की जीत के लिए भी केशव का सीएम बनना जरूरी
जैसा कि यह सभी मानते हैं कि केंद्र में सरकार बनाने का रास्ता यूपी से होकर ही जाता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यूपी से 62 सीटें मिली थी हालांकि 2014 के मुकाबले बीजेपी को 13 सीटों का नुकसान हुआ था फिर भी एक बड़ी संख्या केंद्र में सरकार बनाने के लिए बीजेपी को यूपी से मिला। अब 2024 में फिर से जब चुनाव होंगे तो बीजेपी की पूरी कोशिश रहेगी कि यूपी से ज्यादा से ज्यादा सीटें मिले। मौजूदा हालात देखते हुए अब यह राह बीजेपी के लिए मुश्किल दिख रही है। ऐसे में केशव मौर्य अगर यूपी के सीएम रहते हैं तो इसकी संभावना बढ़ सकती है, ऐसा इसलिए कि केवल यूपी में करीब 43 फीसदी वोटर्स ओबीसी वर्ग से आते हैं।