अयोध्या में हजारों मंदिरों में से एक कनक भवन है, जो कभी भगवान राम और माता सीता का निजी महल था। अयोध्या के उत्तर-पूर्व में बसा कनक मंदिर की कलाकृतियां काफी प्रसिद्ध हैं।
मान्यताओं के अनुसार, महारानी कैकेयी ने बड़े बेटे राम के विवाह के बाद अपनी बड़ी बहु सीता को मुंह दिखाई में कनक भवन उपहार में दिया था। यह अब कनक मंदिर के नाम से जाना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, विवाह के बाद राम के मन में विचार आया कि पत्नी के लिए एक सुंदर महल होना चाहिए। उसी समय महारानी कैकेयी को भी सपने में एक भव्य महल दिखाई दिया था।
कैकेयी ने राजा दशरथ से सपने जैसा महल बनवाने का आग्रह किया। तब इसका निर्माण देवताओं के शिल्पकार विश्वकर्मा जी की देखरेख में हुआ। मान्यता है कि आज भी राम-सीता यहां भ्रमण करते हैं।
कुछ कथाओं के अनुसार, सोने का कनक भवन कैकेयी के लिए ही किया गया था लेकिन राम के विवाह के बाद उन्होंने कनक महल बड़े बेटे राम और बहु सीता को मुंह दिखाई में दे दिया।
मान्यता है कि भगवान राम के अलावा किसी पुरुष को कनक भवन में आने की अनुमति नहीं थी। हालांकि, रामभक्त हनुमान को कनक भवन के आंगन में रहने की अनुमति जरूर थी।
कनक भवन से मिले शिलालेख के अनुसार, द्वापर में जरासंध का वध कर जब भगवान कृष्ण यहां पहुंचे, तब कनक भवन टीले में बदल गया था। विक्रमादित्य ने कनक भवन का जीर्णोद्वार करवाया था।
16वीं शताब्दी के अंत में गोस्वामी तुलसीदास के समय कनक भवन की स्थिति अच्छी थी। 19वीं शताब्दी तक इसकी स्थिति बिगड़ी। ओरछा की महारानी वृषभानु कुंवरि ने 1888 में इसे भव्य रूप दिया।