बीबीसी रिपोर्ट के मुताबिक, विदेशी कारोबारी चीन से पैसा तेजी से निकाल रहे और निवेश कम कर रहे हैं। धीमी अर्थव्यवस्था, कम ब्याज दरें, अमेरिका से खींचतान ने उसे टेंशन में डाल दिया है।
चीन-अमेरिका के राष्ट्रपति इस हफ्ते बैठक करने वाले हैं। जिस पर दुनिया की नजर है। अमेरिका से उसका भू-राजनैतिक विवाद पहले से ही चल रहा है। इससे वहां आर्थिक भरोसा कम हुआ है।
इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (EIU) के निक मैरो का कहना है कि भूराजनीतिक जोखिम, घरेलू नीति में अनिश्चितता, धीमी विकास ने कंपनियों को वैकल्पिक बाजार तलाशने पर मजबूर कर रही हैं।
बीबीसी रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर अंत तक 3 महीनों में चीन के विदेशी निवेश में 11.8 बिलियन डॉलर की कमी आई है। 1998 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है।
चीन में विदेशी निवेश घटने का कारण वहां से विदेशी कंपनियों का मोहभंग होना है। कंपनियां मुनाफा चीन में दोबारा से निवेश नहीं कर रही हैं। इसकी बजाय वे अपना पैसा बाहर ले जा रही हैं।
स्विस औद्योगिक मशीनरी निर्माता ऑरलिकॉन ने कहा, चीन धीमी वृद्धि कर रहा है। सुधार की जरूरत है। 2022 में इसी कंपनी ने कहा था कि चीन में आर्थिक मंदी का असर कारोबार पर पड़ेगा।
ऑरलिकॉन के लिए चीन प्रमुख बाजार है। बीबीसी रिपोर्ट के मुताबिक, ऑरलिकॉन ने कहा, कुछ सालों में चीनी अर्थव्यवस्था में अभी भी करीब 5% वृद्धि की उम्मीद है, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है।
कोरोना के दौरान चीन की शून्य-कोविड नीति से कारोबारियों को परेशानी हुई। कंपनियों की सप्लाई चेन टूटी। ऐसा होने के बाद ही आईफोन बनाने वाली ऐपल ने अपना कारोबार भारत में बढ़ाया।