मोदी कैबिनेट ने महिला आरक्षण विधेयक को मंजूरी दे दी है। अब संसद में इसे पास कराने की कोशिश है। जिसके बाद संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण लागू हो सकता है।
साल 1996 में पहली बार यूनाइटेड फ्रंट की सरकार महिला आरक्षण का प्रस्ताव लेकर आई थी। तब जनता दल ने तीखा विरोध किया। कमेटी बनी, संसोधन का सुझाव मिला लेकिन कुछ नहीं हुआ।
1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी। बिल को पास कराने की कोशिश हुई लेकिन तब राजद और समाजवादी पार्टी के नेताओं ने खूब हंगामा किया और बिल पास नहीं हो सका।
वाजपेयी सरकार ने जब पहली बार महिला आरक्षण बिल पेश किया, तब राजद के एमपी सुरेंद्र प्रसाद यादव ने स्पीकर से बिल की कॉपी छीनकर फाड़ दी थी।
वाजपेयी सरकार ने 11 दिसंबर 1998, 23 दिसंबर 1998, 23 दिसंबर 1999, 2000, 2002 और 2003 में महिला आरक्षण बिल पेश करने की कोशिश की लेकिन बात नहीं बन पाई।
दोबारा सत्ता में लौटी वाजपेयी सरकार ने लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया, ऑल पार्टी मिटिंग बुलाई लेकिन सपा, बसपा और राजद के विरोध के चलते बिल पास नहीं हो पाया।
2004 में यूपीए सरकार ने भी महिला आरक्षण बिल पेश करने की कोशिश की लेकिन सहयोगी पार्टी आरजेडी ने इसका विरोध किया। तब लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री हुआ करते थे।
6 मई 2008 को यूपीए सरकार ने बिल पेश किया तब सपा सांसद अबू आजमी बिल की कॉपी छीनने की कोशिश की। बिल की कॉपी फाड़कर संसद में उछाला गया।
9 मार्च 2010 को बिल राज्यसभा से पास हो गया। बीजेपी-लेफ्ट ने समर्थन किया लेकिन सपा नेताओं ने चेयरमैन की टेबल पर चढ़कर माइक्रोफोन उखाड़ दिया, राजद ने बिल की कॉपी फाड़ी।
वाजपेयी सरकार में बिल का विरोध करने वाले नीतिश कुमार 2010 में समर्थन में आए लेकिन उनकी पार्टी नाराज हो गई। 2011 में स्पीकर मीरा कुमार ने सभी दलों से बात की, बात नहीं बनी।