सुषमा वर्मा के पिता दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करते थे। उनकी मां को स्कूली शिक्षा का मौका नहीं मिला वे अनपढ़ रह गईं। इससे बच्चों को कम उम्र में ही शिक्षा के महत्व का एहसास हुआ।
जब सुषमा की उम्र के अन्य बच्चे बोर्ड परीक्षा दे रहे थे, तब तक सुषमा वर्मा माइक्रोबायोलॉजी में MSC पूरी कर रही थीं। लखनऊ की सुषमा महज 15 साल की उम्र में माइक्रोबायोलॉजिस्ट बन गईं।
सुषमा वर्मा ने 7 साल की उम्र में अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी कर ली थी, 10 साल में इंटरमीडिएट और 13 साल की उम्र में बीएससी पूरी की। इसके बाद पीएचडी की।
महज 2.5 साल की उम्र में सुषमा भीड़ के सामने रामायण की चौपाइयां पढ़ रही थीं। 5 साल की उम्र में सीधे 9वीं कक्षा में प्रवेश लिया। बोर्ड परीक्षा में बैठने के लिए संघर्ष करना पड़ा।
आखिरकार 7 साल की उम्र में 10वीं पास कर दुनिया में सबसे कम उम्र में मैट्रिक पास करने का रिकॉर्ड बना लिया। इसके साथ ही लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज हुआ।
लखनऊ विश्वविद्यालय से बीएससी की और फिर एमएससी के लिए लखनऊ में बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) में प्रवेश लिया।
वह डॉक्टर बनकर लोगों की सेवा करना चाहती थी। महज 10 साल की उम्र में, वह संयुक्त प्री मेडिकल टेस्ट (सीपीएमटी) में शामिल हुईं, लेकिन उम्र के कारण उनका रिजल्ट रोक दिया गया।
19 साल की उम्र में, सुषमा को बीबीएयू में अपने शोध के चौथे वर्ष के दौरान अन्य पिछड़ा वर्ग (एनएफओबीसी) के लिए नेशनल फैलोशिप के लिए चुना गया था।
अपने मास्टर के दौरान, सुषमा टॉपर थीं और विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से पदक प्राप्त किया था।