राष्ट्रपति की शाही गाड़ी एक ऐतिहासिक धरोहर है, जिसका भारत-पाकिस्तान के विभाजन से गहरा संबंध है। राष्ट्रपति की शाही गाड़ी जीतने की कहानी बेहद दिलचस्प है। जानिए
1947 में भारत और पाकिस्तान का विभाजन हुआ। इस दौरान भूमि, सैन्य संसाधन और अन्य वस्तुएं बांटी गईं। इनमें एक खास वस्तु थी गवर्नर जनरल की शाही गाड़ी, जो विवाद का कारण बनी।
पहले यह गाड़ी वायसराय के इस्तेमाल में थी। 1950 में, जब भारत ने गणराज्य का दर्जा प्राप्त किया, तो भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इसे गणतंत्र दिवस पर प्रयोग किया था।
विभाजन के बाद, भारत और पाकिस्तान दोनों देशों ने इस गाड़ी पर अपना अधिकार जताया। गाड़ी किसके पास जाएगी, इसका फैसला टॉस से हुआ।
गाड़ी के विवाद को सुलझाने के लिए भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों ने टॉस खेला। भारत की तरफ से लेफ्टिनेंट कर्नल ठाकुर गोविंद सिंह और पाक की तरफ से साहिबजादा याकूब खान शामिल हुए।
टॉस में भारत ने जीत हासिल की और गाड़ी भारत के पास आ गई। इससे यह गाड़ी भारतीय राष्ट्रपति के शाही काफिले का हिस्सा बन गई।
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद VIP सुरक्षा बढ़ाई गई और इस शाही गाड़ी को बुलेटप्रूफ कारों से बदल दिया गया।
2014 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने इस शाही गाड़ी को फिर से बहाल किया और इसे बीटिंग रिट्रीट समारोह में इस्तेमाल किया।
2017 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी शपथ ग्रहण समारोह में इस ऐतिहासिक गाड़ी का इस्तेमाल किया, जो आज भी भारतीय राष्ट्रपति की धरोहर का हिस्सा है।