भारत की हरित क्रांति के जनक के रूप में प्रतिष्ठित, डॉ. स्वामीनाथन के कार्यों ने देश के कृषि परिदृश्य को नया आकार दिया।
7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु के कुंभकोणम में जन्मे डॉ. स्वामीनाथन ने मद्रास एग्रीकल्चर कॉलेज से एग्रीकल्चर साइंस की डिग्री ली।
उन्होंने प्रतिष्ठित कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में आगे की पढ़ाई की, जहां आनुवंशिकी और पौधों के प्रजनन में उनकी रुचि जगी।
डॉ. स्वामीनाथन का दूरदर्शी दृष्टिकोण उस समय भारत में हरित क्रांति को आगे बढ़ाने में सहायक था जब देश भोजन की कमी, गरीबी और सामाजिक सुरक्षा की कमी से जूझ रहा था।
उन्होंने गेहूं और चावल की ऐसी किस्में विकसित किये जो न केवल अधिक उपज देने वाली थीं, बल्कि रोग प्रतिरोधी भी थीं और भारतीय मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों के लिए उपयुक्त थीं।
डॉ. स्वामीनाथन के प्रयासों का प्रभाव किसी क्रांतिकारी से कम नहीं था। भारत का खाद्य उत्पादन आसमान छू गया और देश भोजन की कमी की स्थिति से खाद्य आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ गया।
डॉ. स्वामीनाथन ने हमेशा टिकाऊ और पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धतियों के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने माना कि उत्पादकता बढ़ाना महत्वपूर्ण है, लेकिन पर्यावरणीय क्षरण की कीमत पर नहीं।
किसानों के अधिकारों, सामाजिक न्याय, ग्रामीण विकास की वकालत की। उनकी पहल ने हाशिए पर रहने वाले समुदायों, महिलाओं को कृषि निर्णय लेने में भाग लेने के लिए सशक्त बनाया।
डॉ. स्वामीनाथन को भारत के दो सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण और पद्म विभूषण मिल चुके हैं। उन्हें विश्व खाद्य पुरस्कार भी मिला, जिसकी तुलना कृषि में नोबेल पुरस्कार से की जाती है।