नारायण मूर्ति को IIT कानपुर से मास्टर पूरा करने के बाद टाटा ग्रुप, एयर इंडिया जैसी प्रतिष्ठित कंपनियों से लाखों रुपये के जॉब ऑफर मिले। जो किसी भी युवा के लिए सुनहरा सपना होते हैं।
मूर्ति ने सभी आकर्षक और ऊंची सैलरी वाली नौकरियों को ठुकराते हुए IIM अहमदाबाद में चीफ सिस्टम प्रोग्रामर के पद को चुना, जहां उन्हें आधी सैलरी मिल रही थी। यह उनका अनोखा फैसला था।
उन्होंने यह नौकरी इसलिए चुनी क्योंकि IIM-A भारत का पहला टाइम-शेयरिंग सिस्टम स्थापित करने जा रहा था। इस प्रोजेक्ट के साथ जुड़कर मूर्ति को आधुनिक ऑपरेटिंग सिस्टम सीखने का अवसर मिला।
मूर्ति के लिए पैसों से ज्यादा जरूरी था ज्ञान और अनुभव। उन्हें इस प्रोजेक्ट में अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ काम करने और प्रतिभाशाली छात्रों के साथ सहयोग करने का मौका मिला।
मूर्ति ने 2019 में एक इंटरव्यू में कहा था कि आधी सैलरी के बावजूद यह उनके जीवन का सबसे सही फैसला था। इसने उन्हें सीखने और आगे बढ़ने का बड़ा प्लेटफार्म दिया।
1981 में नारायण मूर्ति ने 6 अन्य टेक एक्सपर्ट के साथ मिलकर इंफोसिस की नींव रखी। शुरुआत 10000 रुपये के छोटे निवेश से हुई थी, लेकिन उनकी दूरदर्शिता ने इसे विशाल कंपनी में बदल दिया।
आज इंफोसिस की मार्केट वैल्यू 7,86,000 करोड़ रुपये है। यह कंपनी न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर में IT इंडस्ट्री का एक बड़ा नाम बन चुकी है।
नारायण मूर्ति का यह निर्णय यह साबित करता है कि सफलता केवल पैसे या बड़े ऑफर्स पर निर्भर नहीं करती, बल्कि सही फैसलों, सीखने की लगन और अपने काम के प्रति जुनून पर निर्भर करती है।
नारायण मूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति प्रसिद्ध शिक्षिका-लेखिका और MP हैं। उनके दो बच्चे हैं। बेटी अक्षता मूर्ति की शादी यूनाइटेड किंगडम के पूर्व प्रधानमंत्री ऋषि सुनक से हुई है।