इस दिन चांद अपने पूर्ण रूप होता है । माना जाता है कि इसका प्रकाश तेज़ होने के साथ शीतल भी होता है।
शरद पूर्णिमा के दिन पृथ्वी, सूर्य, और चंद्रमा की स्थिति ऐसी होती है कि चंद्रमा के पूरे गोलार्ध पर सूर्य की रोशनी पड़ती है। इस वजह से वो इतना चमकीला दिखाता है।
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा लगभग गोलाकार डिस्क के रूप में दिखाई देता है। इसलिए वो हर पूर्णिमा के मुकाबले ज्यादा बड़ा दिखाई देता है।
चांद और धरती के बीच की दूरी 3,84,400 किलोमीटर है । परिक्रमा पथ पर चंद्रमा के रोटेशन के दौरान शरद पूर्णिमा पर ये दूरी कुछ कम होती है।
चांद खुद से रोशन नहीं होता है। ये सूर्य के लाइट को रिफलेक्ट करता है। शरद पूर्णिमा पर सूर्य से सीधे संपर्क में होने की वजह ये ज्यादा चमकीला दिखाई देता है।
चांद की सरफेस चट्टानों और धूल से बनी है, इसे "लूनर रेजोलिथ" कहा जाता है। सख्त सतह होने की वजह से प्रकाश का परावर्तन भी स्मूथ होता है।
चांद का गुरुत्वाकर्षण बल धरती की तुलना में महज 1/6 है, इस वजह से चंद्रमा पर इंसान को कम वज़न महसूस होता है। इसमें पानी का कोई संकेत नहीं मिलता।
चांद तकरीबन 27.3 दिनों में पृथ्वी की परिक्रमा ( एक चक्कर ) पूरा करता है, लेकिन ये भी उतने ही समय में खुद की धुरी पर घूमता है, इसलिए पृथ्वी से हमेशा इसका एक ही भाग दिखता हैं।
वैज्ञानिकों के अनुमान के मुताबिक चांद पर दिन में तापमान 127°C तो रात में -173°C से -183 °C तक पहुंच जाता है।
चांद का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी पर समुद्र के ज्वार को कंट्रोल करता है, खासकर शरद पूर्णिमा के समय ज्वार बहुत अधिक होता है।
हिंदू मान्यताओं और पौराणिक कथाओं में चंद्रमा को औषधीय गुणों वाला माना जाता है । शरद पूर्णिमा की चांदनी को औषधीय शक्ति वाला माना जाता है, जिसे लोग खीर में ग्रहण करते हैं।
साल 1969 में नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज़ एल्ड्रिन ने पहली बार चंद्रमा पर कदम रखा था। दोनों अपोलो 11 मिशन के तहत चांद पर पहुंचे थे।