सुभाष चंद्र बोस का जीवन इस बात का प्रमाण है कि शिक्षा केवल ज्ञान का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का एक सशक्त हथियार भी हो सकता है।
सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कटक के प्रोटेस्टेंट यूरोपियन स्कूल में हुई, जहां वे पढ़ाई में बेहद प्रतिभाशाली थे।
बचपन से ही सुभाष चंद्र बोस पढ़ाई के साथ-साथ अनुशासन और आत्मसंयम में गहरी रुचि रखते थे। वे हमेशा नई चीजें सीखने के लिए उत्सुक रहते थे।
उन्होंने कोलकाता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से दर्शनशास्त्र (Philosophy) में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। इस दौरान स्वामी विवेकानंद के विचारों का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा।
1913 में सुभाष चंद्र बोस ने प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता में दाखिला लिया। यहां उन्होंने ब्रिटिश प्रोफेसर की भारतीय विरोधी टिप्पणी का विरोध किया, जिससे उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया।
प्रेसीडेंसी कॉलेज की घटना ने उनके भीतर भारतीयता और राष्ट्रप्रेम की भावना को और मजबूत किया।
उनके पिता, जानकीनाथ बोस चाहते थे कि सुभाष उच्च पद पर आसीन हो। पिता के कहने पर उन्होंने 1919 में इंग्लैंड के कैम्ब्रिज विवि में दाखिला लिया और ICS परीक्षा की तैयारी शुरू की।
सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय सिविल सेवा परीक्षा (ICS) में चौथा स्थान प्राप्त किया। यह उनके परिश्रम और दृढ़ निश्चय का प्रतीक था।
उस समय भारतीय सिविल सेवा (ICS) परीक्षा ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा नियंत्रित किया जाता था। और इसे पास करना भारतीयों के लिए एक बड़ी चुनौती थी।
हालांकि सुभाष ने भारतीय सिविल सेवा में सफलता प्राप्त की, लेकिन ब्रिटिश सरकार के अधीन काम करना उनके आदर्शों के खिलाफ था। 1921 में उन्होंने इस प्रतिष्ठित सेवा से इस्तीफा दे दिया।
सुभाष की शिक्षा ने उनके व्यक्तित्व को गढ़ा। उन्होंने राष्ट्रप्रेम, आत्मनिर्भरता और नेतृत्व जैसे गुण अपने छात्र जीवन में ही विकसित किए, जो बाद में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान दिखे।
सुभाष चंद्र बोस की शिक्षा और उनका जीवन आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणा है। यह बताती है कि अगर व्यक्ति के पास लक्ष्य और संकल्प हो, तो वह किसी भी ऊंचाई को छू सकता है।