शिक्षकों का गांव महाराष्ट्र के पुरंदर तहसील का छोटा सा गांव वाघापुर, जहां हर घर में एक शिक्षक है। लगभग 3,000 की आबादी वाले इस गांव में 300 से अधिक शिक्षक हैं।
1892 में 1892 में गांव में पहली प्राथमिक स्कूल की स्थापना हुई, जिसके बाद आसपास के गांवों से भी बच्चे पढ़ने आने लगे। यह शिक्षा की पहली नींव थी।
1970 के दशक में सूखे की मार झेलते, वाघापुर के लोग रेलवे और बांध निर्माण में मजदूरी करते थे। अशिक्षित होने के बावजूद उन्होंने शिक्षा के महत्व को समझा। बच्चों को पढ़ाने पर जोर दिया।
ग्रामीणों के सहयोग और मेहनत से 1961 में गांव में पहला हाई स्कूल खोला गया। इस स्कूल ने गांव में शिक्षा के प्रति रुचि को बढ़ावा दिया और हर साल कई शिक्षक निकलने लगे।
इस गांव से हर बैच में 10-15 शिक्षक निकलते थे। धीरे-धीरे यह परंपरा बन गई कि हर घर से कम से कम एक व्यक्ति शिक्षक बनेगा।
शिक्षा के प्रति गांव का समर्पण ऐसा था कि 1980 के दशक में 100 प्रतिशत रिजल्ट आते थे। छात्र दिन-रात पढ़ाई करते थे, जिससे आज गांव के कई लोग डॉक्टर, सिविल सेवक और शोधकर्ता बने हैं।
मधुरा कुंजिर जैसे युवाओं ने इस परंपरा को और आगे बढ़ाया। उन्होंने 2022 में संयुक्त रक्षा सेवा (CDS) परीक्षा में 11वीं रैंक हासिल की और अब असम में सेवाएं दे रही हैं।
हालांकि अब शिक्षा के अलावा अन्य करियर विकल्पों की ओर ध्यान जा रहा है, लेकिन वाघापुर की शिक्षा परंपरा आज भी एक मिसाल बनी हुई है।