लैब-ग्रोन डायमंड्स देखने में नैचुरल हीरे जैसे ही लगते हैं, लेकिन इनकी मेकिंग और प्राइस में बड़ा फर्क है। ऐसे में खरीदते समय कैसे जानें कि असल हीरा ले रहे हैं या कंट्रोल्ड लैब वाला।
गिर्डल (बाकी हिस्से) की इंसक्रिप्शन जांचें। लैब-ग्रोन डायमंड्स पर Lab-Created, Laboratory-Grown, HPHT या CVD की लेजर-इंसक्रिप्शन होती है, जिसे माइक्रोस्कोप या लूप से देख सकते हैं।
UV (अल्ट्रावायलेट) लाइट के अंदर डायमंड की रेऑक्शन एक अलग चमक पैदा कर सकती है। लैब-ग्रोन स्टोन्स में यह फ्लोरोसेंस नॉर्मल है, और अक्सर यह ऑरेंज या दूसरे रंग की झिलमिलाहट दिखाता है।
प्रत्येक डायमंड (चाहे वह प्राकृतिक हो या लैब-ग्रोन) को भरोसेमंद संस्था जैसे GIA, IGI या SGL से ग्रेडिंग रिपोर्ट के साथ खरीदना चाहिए।
रिपोर्ट में 4Cs (कट, कलर, क्लैरिटी, कैरेट) के साथ यह भी लिखा होता है कि डायमंड Lab-grown है या Natural। लैब-ग्रोन डायमंड्स की रिपोर्ट में मेकिंग (HPHT / CVD) भी बताई जाती है।
लैब-ग्रोन डायमंड्स की कीमत प्राकृतिक हीरों की तुलना में काफी कम होती है लगभग 40% से 70% तक सस्ता होता है।
अगर आपको कोई डायमंड बहुत कम दाम में दिखाया गया है, तो यह संभावना हो सकती है कि वह लैब-ग्रोन हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उसकी क्वालिटी कम है यह बस अधिक किफायती है।
रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय केंद्रीय उपभोक्ता सुरक्षा प्राधिकरण (CCPA) ने इस बात पर जोर दिया है कि लैब-ग्रोन डायमंड की लेबलिंग में पारदर्शिता होनी चाहिए, ताकि स्पष्ट जानकारी मिले।
नई दिशानिर्देशों में यह प्रस्ताव है कि मेकर को स्पष्ट रूप से बताना चाहिए कि डायमंड लेब-जनरेटेड है और साथ ही यह भी कि यह किस विधि (HPHT / CVD) से बनाया गया है।