कसावु साड़ी केरल की प्रमुख प्राचीन साड़ियों में से एक है। इनमें सफेद और गोल्डन शेड का जरी काम होता है जो उन्नत दिखाई देता है।
बंगलूर साड़ी कर्नाटक के बेंगलुरु शहर से प्राप्त होती है और इनमें सोमावरपेट सिल्क का प्रयोग होता है। ये साड़ियां अपने गीता और रामायण की कहानियों के अलंकरणों के लिए प्रसिद्ध हैं।
बनारसी साड़ी यूपी के बनारस शहर से प्राप्त होती है और इनमें भारी जरी और कढ़ाई होती है। ये साड़ियां अपने शानदार डिजाइन और गोल्डन वर्क के लिए प्रसिद्ध हैं।
कांचीपुरम साड़ी तमिलनाडु के कांचीपुरम शहर से प्राप्त होती है और यह भारतीय साड़ियों में विशेष है। इनमें भारी जरी बॉर्डर होता है और यह सिल्क के धागे से बनती हैं।
मैनगलगिरि साड़ी ओडिशा के मैनगलगिरि इलाके से प्राप्त होती है और इनमें भारी जरी बॉर्डर होता हैं। मैनगलगिरि साड़ियों की खासियत उनके ब्रायडर्स और गोल्डन डिज़ाइन में होती है।
मैसूर सिल्क साड़ी की चमक सालों खराब नहीं होती है। इसे मेंटेनेंस की भी बहुत जरूरत नहीं पड़ती है। भारत से मैसूर सिल्क साड़ी विदेशों में भी जाती है।
पोचंपली इकत साड़ी में कपड़े को रंगने और बुनने से पहले सूत को बंधा और रंगा जाता है। चूंकि पैटर्न सूत में ही बनाते है, इकत साड़ी के दोनों किनारों पर पैटर्न बनाया जाता है।