पंजाब में 15वीं सदी में फुलकारी कढ़ाई शुरू हुई थी। इस कढ़ाई में लाल, पीले, नीले और हरे रंग का ज्यादा इस्तेमाल होता है। ज्यामितीय आकार के डिजाइन इसमें बनाए जाते हैं।
काशिदा कश्मीर की एक कढ़ाई शैली है जिसे सुई के सहारे बनाया जाता है। रेशम के धागों से प्लांट और जीव समेत इस कढ़ाई में नेचर से जुड़े डिजाइन बनाएं जाते हैं।
कसुती कढ़ाई कर्नाटक से जुड़ी है। कपास के धागों को हाथ यानी सुई की मदद से बनाया जाता है। कासुती कढ़ाई में चार प्रकार के टांके (मेंथी, गवंती, नेगी और मुर्गी) शामिल होते हैं।
चिकनकारी कढ़ाई यूपी से जुड़ा है। चिकनकारी में सफेद धागे से डिजाइन बनाया जाता है। कढ़ाई के लिए डिजाइन फ्लावर, प्लांट और मोरे, तोते जैसे जीव से लिया जाता है।
ऋग्वेद के समय से भारत में जरदोजी कढ़ाई का अस्तित्व रहा है।इस कढ़ाई में सोने और चांदी के धागों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें मोती और सीक्वेंस वर्क भी किए जाते हैं।
कांथा डिजाइन बंगाल से संबंधित है। कांथा का मतलब लता होता है। इसके डिजाइन काफी सिंपल होते हैं। पुराने साड़ी से निकाले गए धागों से इस कढ़ाई को किया जाता है।
पारसी गारा कढ़ाई की उत्पत्ति फारस में हुई। इसे पारसी समुदाय द्वारा भारत में लगाया गया। इस कढ़ाई को सुई और धागों से बहुत महीन काम किया जाता है।
तमिलनाडु में टोडा कढ़ाई जुड़ा हुआ है।टोडा कढ़ाई पारंपरिक रूप से सफेद या क्रीम रंग के मोटे मैटी कपड़े पर की जाती है।कढ़ाई लाल और काले ऊनी धागों के साथ सफेद सूती कपड़े पर की जाती है।