असम के गुवाहाटी में माता का एक फेमस मंदिर है। इस मंदिर का नाम हैं कामाख्या मंदिर। यह 51 शक्तिपीठों में से एक हैं। इस मंदिर में तंत्र-साधना किया जाता है।
मां दुर्गा को यह मंदिर समर्पित है। लेकिन यहां पर माता की मूर्ति की पूजा नहीं की जाती है। इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा की जाती है।यहां एक कुंड है जो हमेशा फूलों से ढका रहता है।
मंदिर में चट्टान की दरार में स्थित योनि की पूजा की जाती है। यह स्थान हमेशा गीला रहता है, जो देवी की शक्ति का प्रमाण माना जाता है।
कामाख्या मंदिर साल में 3 दिन 22 से 25 जून के बीच बंद होता है। पुरुषों की मंदिर में प्रवेश वर्जित होता है। कहा जाता है कि 3 दिन माता सती रजस्वला रहती हैं।
इन 3 दिन ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल रहता है। मंदिर में माता के लिए सफेद कपड़ा रखा जाता है। बताया जाता है कि कपड़ा 3 दिनों में लाल हो जाता है, जिसे अंबुवाची वस्त्र कहा जाता है।
मंदिर जब खुलता है इस अंबुवाची वस्त्र को भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है। इन 3 दिन अंबुबाची मेला लगता है। देश-विदेश से तांत्रिक और साधु-संत आते हैं। साधना की जाती है।
कामाख्या मंदिर का प्राचीन इतिहास आज भी रहस्य बना हुआ है। कहा जाता है कि इसे कामदेव ने स्वयं बनाया था, लेकिन इसका वर्तमान स्वरूप अहोम राजाओं द्वारा 17वीं शताब्दी में दिया गया।
पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान शिव ने माता सती के जले हुए शरीर को उठाकर तांडव किया था, तब भगवान विष्णु ने उनके शरीर के टुकड़े कर दिए थे। मां सती की योनि इसी जगह पर गिरी थी।
कहा जाता है तो जो तांत्रिक सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं वे बिना किसी सीढ़ी या दरवाजे के मंदिर के गर्भगृह तक पहुंच सकते हैं। हालांकि इसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।