करवा चौथ त्यौहार पूरे देश में उत्साह के साथ मनाया जाता है, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात राजस्थान में इसे पारंपरिक तरीके से सेलीब्रेट किया जाता है।
करवा चौथ इस साल 1 नवंबर को है। यह कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।
विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए कठिन निर्जला व्रत (बिना पानी और भोजन के उपवास) रखकर इस त्योहार को मनाती हैं।
व्रती महिलाएं चंद्रोदय के बाद छलनी से उसे देखकर और फिर उसमें से अपने पति को देखकर अपना व्रत तोड़ती हैं। जिसके बाद पति पत्नी को खाने का एक निवाला और एक घूंट पानी देता है।
यह व्रत सभी विवाहित महिलाओं के लिए बेहद खास होता है। यह नवविवाहित दुल्हनों के लिए अपना पहला करवा चौथ व्रत कई मायनों में बेहद खास होता है।
नवविवाहित दुल्हनों के लिए करवा चौथ इसलिए भी खास होता है क्योंकि उन्हें पति की तरफ से बेहद स्पेशल गिफ्ट मिलता है।
न्यूली मैरिड दुल्हन को फैमिली की तरफ से भी उपहार दिए जाते हैं। दोस्तों, रिश्तेदार भी नई दुल्हन को तोहफा देते हैं।
नई बहू को अपनी सास की तरफ तैयार किया हुआ बाया भी देना चाहिए जिसमें कपड़े, आभूषण, मिष्ठान और कई गिफ्ट भी हो सकते हैं।
करवा चौथ में सरगी एक अहम रस्म है। पहले व्रत के लिए सास को अपनी बहू को सरगी खुद देनी चाहिए।
सरगी की थाली में फल, मठरी, मिठाई, सूखे मेवे और दूसरे फूड होते हैं। सूर्योदय से पहले सास और बहू दोनों को एक साथ सरगी खानी चाहिए।
नवविवाहित को सुबह स्नान करना चाहिए। फिर मंदिर को साफ करके दीया जलाना चाहिए, मां पार्वती, भगवान शिव, गणेश, कार्तिकेय की पूजा करनी चाहिए, निर्जला व्रत का संकल्प लेना चाहिए ।
नवविवाहित दुल्हनों को लाल साड़ी पहनना चाहिए, सोलह श्रृंगार करना चाहिए और हाथों और पैरों पर मेहंदी लगानी चाहिए। इन्हें काला, भूरा और सफेद रंग पहनने से बचना चाहिए।
करवा चौथ में सफेद और काले रंग को शुभ नहीं माना जाता, वहीं भूरा रंग राहु और केतु का प्रतीक होता है। लाल के अलावा वे लाल, गुलाबी, पीला, हरा और मैरून कलर के कपड़े पहन सकते हैं।