कश्मीर में बनने वाला पशमीना शॉल, पूरी दुनिया में अपने रॉयल लुक के लिए जाना जाता है। पशमीना फैब्रिक पर इन्ट्रिकेट हैंड एम्ब्रॉएडरी की जाती है, जिसे आरी, कनी और सोजनी कहा जाता है।
इस शॉल को नैचुरल ऊन के रंगों में ही बनाया जाता है, जिसमें ज्योमेट्रिक और फ्लोरल पैटर्न ज्यादा पाए जाते हैं। कुल्लू में बनने वाले इस शॉल को लोई भी कहा जाता है।
यह शॉल आंध्र प्रदेश की विशेषता है, जिसे हैंड प्रिन्ट और ब्लॉक प्रिन्ट दोनों में तैयार करते हैं। इसे कॉटन में नैचुरल खूबसूरत रंगों से बनाया जाता है।
डमेड कांथा शॉल, वेस्ट बंगाल की खासियत है, जो एक तरह की एम्ब्रॉएडरी है। इसमें पैचवर्क भी किया जाता है। इसे सिल्क फैब्रिक पर भी किया जाता है।
500 सालों से भुजोड़ी शॉल गुजरात की खासियत है। इस शॉल के डिजाइन अमूमन ज्योमेट्रिक ही होते हैं। इस शॉल को न सिर्फ सर्दियों के लिए बल्कि गर्मी के मौसम के लिए भी बनाया जाता है।
यह शॉल औरंगाबाद और हैदराबाद की विशेषता है। इसे सिल्क और कॉटन थ्रेड से बनाया जाता है। इसमें पर्शियन डिजाइन होते हैं और ज्वेल टोन की वजह से इसमें चमक रहती है।
यह शॉल नागालैंड की खासियत है, जो डिफरेंट कलर की वजह से पहचाने जाते हैं। इसके डिजाइन एब्स्ट्रैक्ट के साथ ही फिगर वाले होते हैं। यह ब्लैक, रेड, मरून, व्हाइट और यलो कलर में आते हैं।