साड़ियों के प्रति महिलाओं का प्यार और क्रेज किसी से छिपा नहीं है। लोगों को लगता है कि कांजीवरम और बनारसी साड़ी एक जैसी ही होती है, जबकि ऐसा नहीं है।
हाथ से बनाई जाने के कारण इनका दाम काफी ज्यादा होता है। इनमें अंतर बता पाना बेहद मुश्किल होता है। जानें कांजीवरम और बनारसी सिल्क की साड़ी में अंतर।
अगर इतिहास की बात करें तो बनारसी साड़ी का इतिहास तकरीबन 2000 साल पुराना बताया जाता है। देश के कई हिस्सों में नई दुल्हनों को बनारसी साड़ी ही पहनने को दी जाती है।
कांजीवरम की शुरूआत तमिलनाडु के शहर कांचीपुरम से हुई। कांजीवरम साड़ी 400 वर्षों से भी पहले से बुनकरों द्वारा बुनी जा रही है। ये कृष्ण देवराय के शासनकाल के दौरान लोकप्रियता हासिल की।
14वीं शताब्दी के आस-पास सोने और चांदी के धागे का उपयोग करके इन साड़ियों को बनाया जाता था। अकबर के समय में बनारसी साड़ियों को सबसे ज्यादा तवज्जो दी गई।
कांजीवरम साड़ियों को शहतूत के रेशम से बनाया जाता है, जिस वजह से इनका वजन बेहद कम होता है। असली रेशम के धागे की बनावट दानेदार होती है। कई बार धोने के बाद भी इसकी चमक कम नहीं होती।
बनारसी साड़ी की परख करना चाहते हैं तो इसकी कढ़ाई पर ध्यान दें। जरी वर्क की वजह से बनारसी साड़ी का वजन ज्यादा होता है। पल्लू में 6-8 इंच के प्लेन सिल्क फैब्रिक इस्तेमाल होता है।
सबसे पहले उसके किनारे की साइड से खुरच कर देखे, अगर उसके नीचे आपको लाल सिल्क लगा हुआ दिखता है तो साड़ी असली है। ये ही इसकी पहचान करन का सबसे सही तरीका है।