कई बार ज्यादा रोक-टोक करने से बच्चा सहम जाता है और वह अपनी क्रिएटिविटी शो नहीं कर पाता है। ऐसे में बच्चों को फ्रीडम दें, ताकि वह अपना विजन क्लियर रख सकें।
बच्चों को दूसरों की बात भी ध्यान से सुनने दें और अपनी बात भी कहने दें। बीच में टोकने की आदत से बच्चा बड़ा होकर चिड़चिड़ा हो जाता है और उसमें बोलने और सुनने की शक्ति कम होती है।
बच्चे जो सुनते हैं वह वही बोलते हैं और सीखते हैं। ऐसे में बच्चों के सामने आप अच्छे शब्दों का प्रयोग करें, ताकि बड़े होकर गुस्से में भी वह अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल ना करें।
बहुत से बच्चे हारने पर रोने लगते हैं या गुस्सैल हो जाते हैं। ऐसे में अपने बच्चों को हारने की हैबिट भी सीखने दें। अगर एक बार उसे किसी चीज में हार मिली है तो अगली बार और मेहनत करें।
शेयरिंग इस केयरिंग यह बात तो हम बच्चों को बचपन से ही बोलते हैं। लेकिन वास्तविकता में इसे अप्लाई करें और बच्चों को सिखाएं कि कैसे वह अपनी चीजों को दूसरों के साथ शेयर करें।
बच्चों को शुरू से ही यह जिम्मेदारी दें कि वह अपना खाना, अपना बिस्तर लगाना, अपना बैग पैक करना अपने आप से करें। ऐसे में वह खुद जिम्मेदार बनते हैं।
बच्चों को शुरू से ही ये आदत सिखानी चाहिए कि बिना दूसरों की परमिशन के वह कोई काम ना करें। किसी के कमरे में जाने से पहले परमिशन लें, किसी से बात पूछने से पहले एक्सक्यूज मी करें।
आप अपने बच्चों को पर्सनल हाइजीन सिखाएं और बेसिक एटिकेट्स जैसे हाथ धोना, खांसते-छींकते समय मुंह पर रुमाल रखना और अपने आसपास की सफाई का ध्यान रखना सिखाएं।