सिंधी शादी के मुहूर्त देर रात निकाले जाते हैं। यहां पर कुंडली मिलान को लेनी-देनी कहा जाता है।
सिंधी शादियों में लड़की का पूरा नाम बदल दिया जाता है। शादी के बाद लड़की का नया जन्म माना जाता है। इसलिए फैमिली के नाम को बदलकर दूसरा नाम रखा जाता है।
सिंधी शादी में सात फेरे नहीं बल्कि चार फेरे दूल्हा-दुल्हन लेते हैं। हर फेरे से एक वचन जुड़ा होता है। इसे लावा या फेरा कहा जाता है।
पहला फेरा धर्म से जुड़ा है। दूल्हा-दुल्हन का क्या धर्म होगा उससे जुड़ी जानकारी दी जाती है। शादी के बाद व्यक्ति को धर्म से समझौता नहीं करना चाहिए।
इस फेरे में एक दूसरे के साथ किस तरह का व्यवहार करना है। सीमित आय में किस तरह गृहस्थी चलाई जाती है उसके बारे में बताया जाता है।
यह फेरा कपल के प्यार और एक दूसरे के प्रति सत्कार की भावना को बताता है। कैसे गृहस्थी को मैनेज करना है इसके बारे में ज्ञान दिया जाता है।
कपल अपनी गृहस्थ जिंदगी चिंता मुक्त और खुशहाली से बिताए इसके बारे में बताया जाता है। मोक्ष कैसे मिलेगा इसके बारे में बताया जाता है।
सिंधी शादी में दूल्हा और दुल्हन के घर में एक-एक पत्थर की चक्की रखा जाता है। जिसे देव मानकर पूजा की जाती है।
इस पूजा में उसी चक्की से अनाज पीसा जाता है। इस रिवाज में शादीशुदा महिलाएं ही शामिल होती है। अनाज दूल्हा और दुल्हन के घर आदान-प्रदान किया जाता है।
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