इस्लाम मानव जीवन के मूल्य पर बहुत जोर देता है। कभी-कभी कुछ शर्तों के अधीन गर्भपात की अनुमति है। इस्लाम में निर्दोष की हत्या करना महापाप है।
कुरान में मुताबिक कभी उस जान का कत्ल न करो जिसे अल्लाह ने मारने से मना किया है। इस्लामिक अरब में पहले लड़का और लड़की में भेदभाव था। बेटी होने पर उसे शर्म से दफन कर दिया जाता था।
कुरान ने इस क्रूर कृत्य की निंदा की। बेटी का जन्म वे निश्चय ही बुरा समझते है। कुरान और पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं के बाद बच्चियों की हत्या पर रोक लगा दी गई थी जो उस समय प्रचलित थी।
गर्भपात की बात आती है तो गर्भाधान के पहले 40 दिन अनुमती होती है। यदि इसके लिए कोई वाजिब कारण है तो उस समय ये मान लिया जाएगा। बलात्कार की स्थितियों में गर्भपात की अनुमति दी जाती है।
जब माता-पिता शारीरिक या मानसिक दुर्बलता के कारण बच्चे को पालने में असमर्थ होते हैं। तब भी अबॉर्शन करा सकते हैं। लेकिन गरीबी के डर से बाल गर्भपात न्यायोचित नहीं है।
40 दिनों में गर्भपात की अनुमति पर मतभेद है। वैसे अगर मां के स्वास्थ्य को खतरा है तो गर्भपात की अनुमति होगी। अजन्मे बच्चे की गंभीर विकृति का पता चलता तो गर्भपात कराने की अनुमति है।
अधिकांश आधुनिक विद्वान पहले 40 दिनों में कुछ लचीलेपन के साथ गर्भपात की अनुमति देते हैं, लेकिन उसके बाद वे कहते हैं कि इसकी तत्काल आवश्यकता होनी चाहिए।
इस्लाम में अबॉर्शन अत्यधिक आवश्यकता मनमाना नहीं है, लेकिन किसी मुस्लिम विद्वान के साथ-साथ चिकित्सा विशेषज्ञों से भी परामर्श करना चाहिए।
माना जाता है कि पहले 120 दिनों के बाद बच्चे को आत्मा दी जाती है। इसलिए जब तक मां की जान को खतरा न हो, तब तक बच्चे का गर्भपात कराने की सख्त मनाही है।
इस्लाम में अगर मां के गर्भ में भ्रूण की मृत्यु हो जाती है तो गर्भपात की भी अनुमति है। इस्लाम समझता है कि जीवन कभी-कभी जटिल हो सकता है और ऐसे में गर्भपात आवश्यक हो सकता है।