जेल जाने के बाद भी दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री का पद नहीं छोड़ा है। उनका कहना है कि जेल से ही सरकार चलाएंगे, क्योंकि दिल्ली की जनता का भी यही मन है।
कानूनी जानकारों के मुताबिक, अगर अदालत केजरीवाल को इस्तीफा देने का आदेश देती है तो उन्हें पद छोड़ना ही पड़ेगा। इसीलिए उनके वकील कोर्ट को संतुष्ट करने वाले जवाब ढूंढ रहे हैं।
जानकारों के अनुसार, AAP के वकील कोर्ट में दलील देने का प्लान कर रहे हैं कि जेल में ही केजरीवाल को मुख्यमंत्री दफ्तर जैसी सुविधाएं दी जाएं, ताकि वे सरकार चला सकें।
आप के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, पार्टी की कानूनी टीम कोर्ट में उन मिसालों का हवाला देने का प्लान बना रही, जब विचाराधीन कैदियों को तिहाड़ जेल से दफ्तार चलाने की अनुमति दी गई थी।
जेल जाकर भी पद न छोड़ने की केजरीवाल की जिद से पहली बार ऐसी स्थिति पैदा हुई है। जेल मैनुअल 1349 के अनुसार, एक विचाराधीन कैदी को जेल में सिर्फ 10 अधिकार ही दी जाती हैं।
कानूनी बचाव, वकीलों या परिवार से मुलाकात, वकालतनामा पर साइन, पावर ऑफ अटॉर्नी देना, वसीयत निपटाना, आवश्यक धार्मिक आवश्यकताएं, अदालतों में आवेदन जैसे 10 अधिकार हैं।
जेल मैनुअल के अनुसार, कई तरह की सुविधाएं जेल में बंद कैदी के लिए स्वीकृत की गई हैं लेकिन इनमें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करना या फाइलों पर हस्ताक्षर करने जैसी सुविधाएं शामिल नहीं हैं।