पॉलीग्राफ टेस्ट को लाई डिटेक्टर यानी झूठ पकड़ने वाले टेस्ट के रूप में भी जाना जाता है। ये एक ऐसी मशीन है, जो कि शरीर में होने वाले बदलावों को माप कर सच-झूठ का पता लगाती है।
पॉलीग्राफ टेस्ट में क्राइम करने वाले से कुछ सवाल किए जाते हैं। जब वो जवाब देता है तो मशीन के जरिए साइकोलॉजिस्ट पल्स रेट, ब्लड प्रेशर, हार्टबीट को ग्राफ से मापते हैं।
शरीर के अलग-अलग अंगों में तार जोड़े जाते हैं, जिन्हें मशीन से कनेक्ट किया जाता है। सीने पर एक बेल्ट बांधी जाती है, जिसे न्यूमोग्राफ ट्यूब कहते हैं। इससे हार्ट बीट मापी जाती है।
इसके अलावा आरोपी की उंगलियों पर लोमब्रोसो ग्लव्स बांधे जाते हैं। साथ ही हाथों पर पल्स कफ बांधते हैं, जिससे ब्लड प्रेशर को मॉनीटर करते हैं।
इसके बाद आरोपी से सवाल पूछा जाता है। जवाब देने के दौरान उसकी हार्ट बीट, पल्स रेट, उंगलियों की मूवमेंट की मॉनिटरिंग स्क्रीन पर होती है।
पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान साइकोलॉजिस्ट एक्सपर्ट्स अपराधी के हर एक हाव-भाव और शरीर में होने वाले बदलावों की मॉनिटरिंग करते हैं। बाद में इनके विश्लेषण सच-झूठ का पता लगाते हैं।
पॉलीग्राफ टेस्ट की शुरुआत 1921 में हुई। इसका श्रेय अमेरिकी फिजियोलॉजिस्ट जॉन ऑगस्टस लार्सन को जाता है। 1924 के बाद अपराधियों से पूछताछ में लगातार इसका इस्तेमाल हो रहा है।
पॉलीग्राफ टेस्ट के दौरान एक सीरीज़ में कई सवाल पूछे जाते हैं। अगर कोई शख्स झूठ बोलता है तो उसके ग्राफ में तय पैमानों से अलग चीजें नजर आती हैं, जिसे साइकोलॉजिस्ट समझ लेते हैं।