तिरुपति मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर स्वामी की मूर्ति पर लगे बाल असली हैं, जो मुलायम रहते हैं, कभी नहीं उलझते। कहा जाता है कि गंधर्व राजकुमारी नीला देवी ने इन्हें उपहार में दिए थे।
तिरुपति बालाजी मंदिर का वातावरण हमेशा ठंडा रखा जाता है। मान्यता है कि बालाजी को काफी गर्मी लगती है। उनके शरीर पर पसीने की बूंद भी देखने को मिलती है। उनकी पीठ नम रहती है।
कहा जाता है कि भगवान वेंकटेश की प्रतिमा पर कान लगाकर सुनने पर समुद्र की लहरों की आवाज बड़ी ही आसानी से सुनाई पड़ती है। यही कारण है कि मंदिर में प्रतिमा हमेशा नम रहती है।
माना जाता है कि देवी लक्ष्मी भगवान वेंकटेश्वर के हृदय में रहती हैं।हर गुरुवार बालाजी का पूरा श्रृंगार उतार जब स्नान करवाने चंदन का लेप हटाया जाता है तो लक्ष्मी जी की छवि उभर आती है
भगवान बालाजी के मंदिर में एक दीया है, जो हमेशा जलता रहता है। इस दीए में न तो कभी तेल डाला जाता है और ना ही कभी घी। कोई नहीं जानता कि दीपक को किसने और कब जलाया था।
मंदिर में मुख्य द्वार की दाईं ओर 1 अनोखी छड़ी है। बचपन में इसी से भगवान बालाजी की पिटाई होने से उनकी ठुड्डी पर चोट लग गई थी। घाव भरने के लिए हर शुक्रवार चंदन का लेप लगाया जाता है।
भगवान वेंकटेश्वर के मुकुट में 'मेरु पाचा' नाम का एक विशाल पन्ना (Emerald) लगा है, जो दुनिया के सबसे बड़े पन्नों में से एक माना जाता है। इसका वजन करीब 96 कैरेट है।
जब भगवान बालाजी के गर्भ गृह में जाकर देखेंगे तो ऐसा लगता है कि मूर्ति गर्भ गृह के बीचो-बीच है। जब गर्भ गृह से बाहर आकर देखेंगे तो लगता है कि मूर्ति दाईं ओर है। यह आजतक रहस्य बना है
भगवान बालाजी की प्रतिमा का हर दिन प्रतिदिन नीचे धोती और ऊपर साड़ी से श्रृंगार किया जाता है। मान्यता है कि बालाजी में ही माता लक्ष्मी का भी रूप समाहित है।
बालाजी मंदिर से 23 किमी दूर एक अनोखा गांव है। जहां बाहरी नहीं जा सकते हैं। बालाजी को चढ़ाने फल, फूल, दूध, दही, घी यहीं से आते हैं। गांव में महिलाएं सिले कपड़े नहीं पहनती हैं।