चाणक्य भारत के महान विद्वान थे। उन्होंने नीति शास्त्र जैसे महान ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ की एक नीति में बताया गया है कि पत्नी की परीक्षा कब होती है। जानें इस नीति के बारे में…
जानीयात् प्रेषणे भृत्यान् बान्धवान् व्यसनागमे।
मित्रं चापत्तिकालेषु भार्या च विभवक्षये।।
अर्थ- काम करने के समय नौकर की, दुख आने पर बंधु-बांधवों की, कष्ट आने पर मित्र की और धन का नाश होने पर पत्नी की परीक्षा होती है।
जब पति के पास पैसा होता है तो पत्नी उसकी हर बात मानती है और उसे प्यार भी करती है, ये प्यार असली है या नकली, इस बात का पता जब चलता है जब पति के धन का नाश हो जाता है।
जब किसी के ऊपर कोई दुख आता है तो वह सबसे पहले अपने भाई और रिश्तेदारों से मदद की उम्मीद करता है। ऐसे समय में भाई और रिश्तेदारों के व्यवहार से उनकी असलियत पता चलती है।
जीवन में कष्टों का आना-जाना लगा रहता है। इस स्थिति में व्यक्ति अपने दोस्तों से सहायता चाहता है। इस स्थिति में जो मित्र काम आए वही सच्चे दोस्त होते हैं, अन्य नहीं।
आचार्य चाणक्य के अनुसार, नौकर की परीक्षा काम करते समय होती है। नौकर कितना समझदार है और मालिक के प्रति कितना ईमानदार है ये बातें उसके काम करने के ढंग से जान सकते हैं।