आचार्य चाणक्य ने अपनी एक नीति में बताया है कि भ्रष्ट स्त्री (पत्नी), लालची व्यक्ति, मूर्ख और चोर का सबसे बड़ा शत्रु कौन होता है। आगे जानिए आचार्य चाणक्य की इस नीति के बारे में…
लुब्धानां याचक: शत्रु: मूर्खाणां बोधको रिपु:।
जारस्त्रीणां पति: शत्रुश्चौराणां चंद्रमा: रिपु:।।
अर्थ- लोभी का सबसे बड़ा शत्रु है मांगने वाला, मूर्ख व्यक्ति का शत्रु है उपदेश देने वाला, भ्रष्ट पत्नी का शत्रु है उसका पति और चोर का दुश्मन है चंद्रमा।
जो स्त्री यानी पत्नी बुरे चरित्र वाली है, वह सबकुछ अपनी मर्जी से करना चाहती है लेकिन पति उसे ऐसा करने से रोकता है। इसलिए वह स्त्री पति को ही अपना शत्रु मानने लगती है।
लालची व्यक्ति हर समय सिर्फ पैसा बचाने के बारे में ही सोचता रहता है। यदि उसके पास को धन मांगने वाला आ जाए तो लोभी को वह अपने शत्रु के समान ही नजर आता है।
मूर्ख व्यक्ति को दूसरों की बातें समझ नहीं आती। यदि कोई विद्वान उसे सही बात समझाने की कोशिश करता है तो वह उपदेश देने वाले को ही अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझने लगता है।
चोर अपन काम रात के समय ही करते हैं। चोर छिपते-छिपाते हुए ये काम करते हैं, लेकिन कईं बार चांद की रोशनी में नजर आ जाते हैं।इसी वजह से चोर चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं।