उड़ीसा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा 20 जून, मंगलवार से शुरू होगी। रथयात्रा से जुड़ी अनेक बातें कम लोग जानते हैं। आगे जानिए रथयात्रा से जुड़ी ऐसी ही रोचक बातें…
भगवान जगन्नाथ जिस रथ पर सवार होते हैं, उसके घोड़ों के नाम बलाहक, शंख, श्वेत व हरिदाश्व है। इनका रंग सफेद होता है। इस रथ को गरुड़ध्वज, नंदीघोष व कपिध्वज भी कहते हैं।
भगवान जगन्नाथ के रथ के सारथी का नाम दारुक है। इसके रक्षक गरुड़ हैं। रथ पर हनुमानजी और नृसिंह का प्रतीक चिह्न के साथ सुदर्शन स्तंभ भी होता है। ये रथ अन्य रथों से बड़ा होता है।
भगवान जगन्नाथ के रथ की ध्वजा यानी झंडा त्रिलोक्यवाहिनी कहलाता है। रथ में 16 पहिए होते हैं। ऊंचाई साढ़े 13 मीटर होती है। लगभग 1100 मीटर कपड़े से रथ को ढंका जाता है।
भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है। इस रथ को जिस रस्सी से खींचा जाता है उसका नाम शंखचूड़ है। इन रथों को बनाने में किसी भी धातु का उपयोग नहीं किया जाता।
रथयात्रा में श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलरामजी का रथ भी होता है। इस रथ को तालध्वज कहते हैं। इस पर महादेव का चिह्न होता है। रथ के रक्षक वासुदेव व सारथि का नाम मतालि है।
रथयात्रा में तीसरा रथ श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा का होता है। इस रथ का नाम देवदलन है। इस रथ पर देवी दुर्गा का चिह्न अंकि होता है। रथ की रक्षक जयदुर्गा व सारथि अर्जुन होते हैं।
इन तीनों रथों को बनाने में कील या कांटे आदि का प्रयोग नहीं होता। यहां तक की कोई धातु भी रथ में नहीं लगाई जाती। रथ बनाने का कार्य 2 महीने पहले से ही शुरू हो जाता है।
रथ तैयार होने के बाद इसकी पूजा की जाती है, जिसे 'छर पहनरा' नाम से जाना जाता है। रथयात्रा शुरू होने से पहले सोने की झाड़ू से यात्रा वाले रास्ते को साफ किया जाता है।
रथयात्रा में शामिल तीनों रथों के शिखर का रंग अलग होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ का शिखर लाल-हरा, बलराम के रथ का शिखर लाल-पीला व सुभद्रा के रथ का शिखर लाल-ग्रे होता है।
रथयात्रा में शामिल सभी रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं क्योंकि इसकी लकड़ी हल्की होती है, जिससे इन्हें आसानी से खींचा जा सकता है। इसके लिए खास पेड़ों का चयन किया जाता है।