हिंदू पंचांग के 11वें महीने को माघ कहते हैं। इस बार माघ मास 26 जनवरी से शुरू हो चुका है। इस महीने में प्रयागराज में गंगा तट पर कल्पवास किया जाता है। जानें क्या है कल्पवास…
माघ मास के दौरान प्रयागराज में गंगा तट पर कठोर नियमों का पालन करते हुए कुटिया बनाकर रहना कल्पवास कहलाता है। कल्पवास में जप, तप और दान करने की परंपरा भी है।
मान्यता है कि माघ मास में स्वयं भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं। इसलिए इस महीने में गंगा किनारे रहकर रोज गंगा स्नान किया जाता है और भगवान विष्णु की भक्ति की जाती है।
'कल्प' का अर्थ है युग और 'वास का अर्थ है रहना। जो व्यक्ति माघ मास में कठिन नियमों का पालन करते हुए कल्पवास करता है, उसे एक युग में किए गए दान, जप, दान का फल प्राप्त होता है।
कल्पवास के दौरान सिर्फ 1 समय भोजन करने का विधान है और वह भी पूरी तरह से सात्विक। इस दौरान जमीन पर सोना और ब्रह्मचर्य का पालन करना भी जरूरी है।
कल्पवास के दौरान भक्त दिन में रोज 3 बार गंगा में स्नान करते हैं और शेष समय भगवान के भजन-कीर्तन में बीताते हैं। कल्पवास में धूम्रपान, तंबाकू आदि पर भी पूरी तरह से पाबंदी होती है।
जो व्यक्ति कल्पवास करता है वह संकल्पित क्षेत्र यानी तय सीमा से बाहर नहीं जा सकता। एक महीने तक उसे उसी क्षेत्र में रहना पड़ता है। इस दौरान व्यक्ति सांसारिक बंधनों से मुक्त रहता है।
कल्पवास में किसी दूसरे द्वारा पकाया भोजन भी नहीं कर सकते। खुद या पत्नी के बनाए भोजन को ग्रहण करना होता है। फलाहार जरूर कर सकते हैं। ब्रह्मचर्य का पालन बहुत जरूरी है।
कल्पवास के दौरान झूठ बोलना, चुगली करना, किसी के बारे में गलत सोचने पर भी पाबंदी होती है। प्रतिदिन गंगा स्नान के बाद जरूरतमंदों को अनाज, भोजन, कपड़ा आदि दान भी किया जाता है।