इस बार मुहर्रम का जुलूस 29 जुलाई को निकाला जाएगा। इस दिन इमाम हुसैन की शहादत को याद किया जाता है। इस दौरान कई परंपराओं का पालन किया जाता है। जानें क्या हैं ये परंपराएं…
मुहर्रम के जुलूस में ताजिए निकाले जाते हैं। ये रंग-बिरंगी कागजों से बने होते हैं। दरअसल ये ताजिए इमाम हुसैन के मकबरे की याद दिलाते हैं। मुहर्रम के जुलूस में ये जरूर होते हैं।
मुहर्रम के जुलूस में मर्सिया शोक गीत गाए जाते हैं। इन गीतों में इमाम हुसैन की शहादत का जिक्र होता है, जिसे सुनकर हर कोई गमगीन हो जाता है। ये परंपरा भी काफी पुरानी है।
मुहर्रम के जुलूस में हलीम बांटा जाता है। हलीम एक प्रकार की खिचड़ी है जो अनाज और मांस से बनती है। मान्यता है कि इमाम हुसैन और उनके साथियों ने अंतिम दिनों में यही खाया था।
मुहर्रम के जुलूस के बाद मजलिसें होती हैं यानी एक तय स्थान पर बहुत से लोग इकट्ठा होकर इमाम हुसैन की शहादत की कहानियां सुनते हैं और नेकी की राह पर चलने का मन बनाते हैं।
मुहर्रम के जुलूस के दौरान महिलाएं छाती पीट-पीटकर शोक मनाती हैं और पुरुष धारदार हथियारों से खुद को चोट पहुंचाते हैं। खास बात ये है कि लोग इन जख्मों का ईलाज भी नहीं करवाते।