इस बार 29 जुलाई को ताजिए निकालकर इमाम हुसैन को याद किया जाएगा। इमाम हुसैन हजरत पैगंबर के नवासे थे। इराक में स्थित कर्बला के मैदान में दुश्मनों ने इन्हें कत्ल कर दिया था।
इमाम हुसैन के नाम पर हमारे देश में हुसैनी ब्राह्मणों का समुदाय है। सुनने में ये बात थोड़ी अजीब जरूर लगे, लेकिन ये सच है। ये लोग भी हर साल इमाम हुसैन को याद करके गम मनाते हैं।
मान्यता है कि इमाम हुसैन के दौर में भारत के मोहयाल स्थान पर राजा राहिब सिद्ध दत्त का राज था, लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी। तब वे किसी के कहने पर इमाम हुसैन के पास पहुंचे।
राजा राहिब सिद्ध दत्त ने अपनी परेशानी इमाम हुसैन को बताई। उन्होंने राजा के लिए अल्लाह से दुआ की। कुछ समय बाद राजा के घर बच्चों की किलकारी गूंजने लगी। ये ही हुसैनी ब्राह्मण कहलाए।
हुसैनी ब्राह्मणों को पता चला कि इमाम हुसैन की जान खतरे में हैं तो वे तुरंत उनकी मदद के लिए इराक गए, लेकिन उनके पहुंचने से पहले ही यजीद ने इमाम हुसैन का कत्ल कर दिया।
हुसैनी ब्राह्मणों ने इमाम हुसैन की शहादत का बदला लेने का फैसला लिया। यजीद की सेना और इनके बीच भयंकर युद्ध हुआ। हुसैनी ब्राह्मणों ने चुन-चुन कर इमाम हुसैन के कातिलों को मारा।
यजीद की सेना और हुसैनी ब्राह्मणों की लड़ाई में राजा राहिब सिद्ध दत्त के 7 बेटे भी मारे गए। भारत में आज भी हुसैनी ब्राह्मण रहते हैं। वे भी इमाम हुसैन की शहादत का गम मनाते हैं।