13 जनवरी से प्रयागराज में महाकुंभ 2025 शुरू हो चुका है। इस महाकुंभ में 13 अखाड़ों द्वारा लाखों नागा साधु बनाए जाएंगे। नागा दीक्षा लेने से पहले इन लोगों को खुद का पिंडदान करना पड़ेगा।
हिंदू धर्म में पिंडदन उस व्यक्ति का किया जाता है जिसकी मृत्यु हो चुकी हो चुकी होती है। मान्यता है कि पिंडदान करने से मृतक की आत्मा को शांति मिलती है और मोक्ष प्राप्त होता है।
मान्यता है कि नागा साधु जीवित भले ही हों लेकिन वे वे अपने परिवार और समाज के लिए मर चुके होते हैं। पारिवारिक बंधनों से मुक्त होने के लिए नागाओं का पिंडदान करवाया जाता है।
जो व्यक्ति नागा बनता है उससे 17 पिंडदान करवाए जाते हैं, 16 अपने पूर्वजों के और 17वां खुद का। इसके बाद वह सांसारिक बंधनों से मुक्त हो जाता है और नए जीवन के साथ अखाड़े में लौटता है।
नागा साधुओं को सनातन धर्म का रक्षक कहा जाता है। यानी धर्म की रक्षा के लिए वे हरदम तैयार रहते हैं और किसी भी विकट स्थिति से निपटने के लिए हथियार उठाने से भी नहीं डरते।
साधु परंपरा के अनुसार, प्रयाग में जो साधक नागा दीक्षा लेते हैं, उन्हें राजराजेश्वर कहते हैं। नागा बनने के बाद गुरु इनके कान में एक मंत्र बोलते हैं, जिसका ये जीवनभर जाप करते हैं।