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क्या है ‘घोटुल परंपरा’, जिसमें शादी से पहले साथ रहते हैं लड़का-लड़की?

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माड़िया जाति में है घोटुल प्रथा

छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में माड़िया जनजाति के लोग रहते हैं। यहां शादी से पहले लड़का-लड़की साथ रहते हैं, इसे घोटुल प्रथा कहा जाता है। आगे जानें क्या है ये परंपरा…

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क्या होता है घोटुल?

गांव में विवाह योग्य लड़के-लड़कियों के रहने के लिए एक बड़ी झोपड़ी बनाते हैं, जिसे घोटुल कहते हैं। घोटुल की दीवारों में रंगरोगन कर चित्रकारी की जाती है, जिससे ये और सुंदर लगे।

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क्या है घोटुल प्रथा?

माड़िया जनजाति के बच्चे जब 10 साल के हो जाते हैं तो वे घोटुल झोपड़ी में रहते हैं। यहां कईं लड़के-लड़की साथ रहते हुए पढ़ाई, गृहस्थी से जुड़ी बातें और अपनी परंपराएं सीखते हैं।

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चुनते हैं योग्य जीवनसाथी

घोटुल में शामिल लड़कियों को 'मोटीयारी' और लड़कों को 'चेलिक' कहते हैं। घोटुल में रहते हुए ही ये लड़के-लड़की अपने लिए योग्य साथी का चुनाव भी करते हैं। ये परंपरा भी दिलचस्प है।

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कैसे तय होती है जोड़ी?

जब माड़िया जाति के लड़के व्यस्क हो जाते हैं तो वह एक बांस की एक कंघी बनाते हैं। उस कंघी को जब कोई लड़की चुरा लेती है और ये समझा जाता है कि उस लड़के कोई लड़की पसंद करती है।

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ऐसे होता है विवाह

बाद में वह लड़की अपने बालों में वह कंघी लगाकर निकलती है तो सबको पता चल जाता है कि वो लड़की किसी लड़के से प्रेम करती है। इसके बाद दोनों आपसी सहमति से साथ रहने लगते हैं।

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किसने शुरू की घोटुल प्रथा?

कहते हैं कि घोटुल प्रथा की शुरूआत लिंगो पेन यानी लिंगो देव ने शुरू की थी। लिंगो देव को माड़िया जनजाति के लोग अपना देवता मानते हैं। उन्होंने ही इसके नियम भी बनाए थे।

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