एक भक्त ने प्रेमानंद महाराज से पूछा ‘अहिंसा परम धर्म है, ऐसा है तो राम-रावण का युद्ध और कौरव-पांडवों का युद्ध क्यों हुआ, इस स्थिति में अहिंसा कैसे परम धर्म हो सकती है?’
प्रेमानंद महाराज ने कहा ‘अहिंसा परम धर्म है, लेकिन हमें अहिंसा का स्वरूप समझना होगा। अहिंसा का अर्थ सिर्फ इतना नहीं कि हम किसी को मन, वचन और कर्म से हानि न पहुंचाएं।
प्रेमानंद महाराज ने कहा ‘यदि हमारे धर्म की हानि हो रही है या हम जिसकी रक्षा कर रहे हैं, कोई उसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है तो उसे दंड देना भी अहिंसा ही कहलाएगा।’
प्रेमानंद महाराज ने कहा ‘गलत काम करने वाले को सजा देने के लिए दंड विधान है। और अपराधी को दंड देना भी अहिंसा के अंतर्गत ही आता है। क्योंकि इससे समाज का भला होता है।’
प्रेमानंद महाराज ने कहा ‘अगर कोई पापी ज्यादा समय तक जिएगा तो लोगों को परेशान करेगा। इसलिए उसे सजा देना जरूरी है। ये काम भी अहिंसा ही है, इसे हिंसा नहीं समझें।’
प्रेमानंद महाराज ने कहा ‘लेकिन इसका अर्थ ये नहीं कि हम स्वयं किसी को दंड देने लगें। दंड देने का अधिकार पुरातन समय में राजा को था और वर्तमान समय में न्यायपालिका को।’