जगन्नाथ जी की रथ यात्रा 20 जून की रात 10.04 मिनट पर शुरू होकर 21 जून की शाम 07.09 मिनट पर नगर भ्रमण के बाद समाप्त होगी
प्रचलित कथा के अनुसार, देवी सुभद्रा ने भाई श्रीकृष्ण और बलराम से द्वारका दर्शन की इच्छा की थी, इसे पूरा करने तीनों रथ से द्वारका भ्रमण पर निकले थे
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा देवी के रथ नीम की लकड़ियों से बनते हैं, रथों में कील या अन्य धातु का इस्तेमाल नहीं होता है
करीब 13 मीटर ऊंचे जगन्नाथ रथ में 16 पहिये होते हैं, इन्हें 832 नीम की लड़कियों से बनाया जाता है, इनके नाम गरुड़ध्वज, कपिध्वज और नंदीघोष हैं
दुर्गा का प्रतीक सुभद्रा देवी के रथ का नाम देवदलन है, ये 12.9 मीटर ऊंचा होता है, रंग लाल और काला रखा जाता है
बलराम भगवान शिव का प्रतीक माने जाते हैं, इनके रथ का नाम तालध्वज होता है, 14 पहियों का यह रथ 13.2 मीटर होता है
उत्कल यानी ओडिशा प्रदेश के प्रधान देवता जगन्नाथ जी हैं, पुरी में जगन्नाथजी मंदिर है, कहते हैं कि जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं
रथयात्रा में जगन्नाथजी को दशावतारों के रूप में पूजा जाता है, इनमें विष्णु, कृष्ण, वामन के अलावा बुद्ध भी हैं, भगवान जगन्नाथ विभिन्न धर्मों , मतों और विश्वासों का अनूठा समन्वय हैं