सुप्रीम कोर्ट के बुलडोजर न्याय पर जारी गाइडलाइन के 9 प्रमुख बिंदु। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने क्यों कहा कि दंड देना न्यायपालिका का काम है,जानें।
खंडपीठ ने इस बात पर जोर दिया कि किसी व्यक्ति के खिलाफ केवल आरोप या दोष साबित होने से उसका घर ध्वस्त करना असंवैधानिक है। इसके लिए बाकायदा पूरी गाइड लाइन का फॉलों करना जरूरी है।
सभी विध्वंस कार्रवाइयों से पहले संबंधित व्यक्ति को कम से कम 15 दिन का समय दिया जाएगा, ताकि वह अपना पक्ष प्रस्तुत कर सके। इसे एक कानूनी अधिकार के रूप में देखा गया है।
पारदर्शिता बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि सभी विध्वंस कार्रवाइयों की वीडियोग्राफी की जाए। यह सुनिश्चित करेगा कि अधिकारियों द्वारा किसी भी प्रकार का दुरुपयोग न हो।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति का घर ध्वस्त करना संविधान के तहत उसके आश्रय के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है, और इसे केवल कानूनी प्रक्रिया के तहत ही किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कार्यपालिका को न्यायपालिका की भूमिका नहीं निभानी चाहिए और विध्वंस के आदेश से किसी को दंडित नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने कहा कि किसी व्यक्ति के अपराध के आधार पर केवल उसके घर को ध्वस्त करना सामूहिक दंड के समान है, जो असंवैधानिक है।
जिन परिवारों के घर बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के ध्वस्त किए गए, उन्हें मुआवजा मिलेगा, और अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को इन दिशा-निर्देशों को प्रसारित करने का निर्देश दिया, ताकि स्थानीय स्तर पर जागरूकता और अनुपालन सुनिश्चित हो सके।
ये दिशा-निर्देश सार्वजनिक भूमि पर अनधिकृत निर्माणों या न्यायालय द्वारा आदेशित विध्वंस पर लागू नहीं होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि कोई भी सभ्य कानूनी व्यवस्था बुलडोजर के माध्यम से न्याय की उम्मीद नहीं कर सकती। विध्वंस से पहले कानूनी प्रक्रियाओं का पालन जरूरी है।