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भारतरत्न अटल जी की 15 यादगार तस्वीरें, बचपन से आखिरी तक कैसे बदला लुक

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अटल जी की पढ़ें इंटरेस्टिंग कहानियां

भारत रत्न और पूर्व PM अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि पर उनके जीवन की रोचक कहानियों में जानें उन्होंने क्यो जनेऊ उतार दिया था। साथ में बचपन से लेकर आखिरी तक की 15 तस्वीरें।

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पहले डाकुओं के नाम से कुख्यात गांव अब है इसलिए विख्यात

अटल जी का जन्म ग्वालियर में हुआ था, लेकिन उनका पैतृक गांव बटेश्वर आगरा के पास है। एक समय में डाकुओं के कारण ये गांव कुख्यात था और अब यहां के शिव मंदिरों के कारण विख्यात है।

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आज भी पैतृक गांव में रहते हैं परिवार के लोग

यमुना नदी के किनारे बसे बटेश्वर गांव में आज भी अटलजी के दोस्त और फैमिली मेंबर्स रहते हैं।  

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इसलिए कम करा दी गई थी 2 साल की उम्र

उनका जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ, लेकिन सर्टिफिकेट में 25 दिसंबर 1926 लिखी है। 2 वर्षों का अंतर उनके पिता ने इसलिए कराया था कि वो ज्यादा दिनों तक नौकरी कर सकेंगे।

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पहली बार बटेश्वर से गिरफ्तार हुए थे अटल बिहारी वाजपेई

उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी एक प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान और ज्योतिषी थे। मां कृष्णा देवी देवी। बचपन में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और पहली बार बटेश्वर में गिरफ्तार हुए।

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पहली बार 24 दिन आगरा जेल में थे बंद

आगरा जेल में बच्चा बैरक में 24 दिन बंद रहे। नाबालिग होने के कारण बाद में उन्हें छोड़ दिया गया।

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काफी डरावना था जीवन का पहला भाषण

अटल जी ने बताया था कि उनके पहले भाषण का अनुभव डरावना था। वह तब 5वीं कक्षा में थे और वार्षिकोत्सव में बिना तैयारी के बोलने लगे। तब उन्होंने ठानाा कि रटकर नहीं, बल्कि दिल से बोलेंगे।

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इसलिए उतार दी थी जनेऊ

एक बार उन्होंने जनेऊ उतारकर कहा, “जब तक हर हिंदू को जनेऊ पहनने का अधिकार नहीं मिलता, मैं इसे नहीं पहनूंगा।” उनकी यह सादगी और प्रतिबद्धता उन्हें जनता के बीच बेहद लोकप्रिय बनाती थी।

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ज्योतिष के थे अच्छे जानकार

अटल जी भी कहते हैं कि कविता उन्हें घुट्टी में मिली थी। उनके पिता संस्कृत भाषा और साहित्य के अच्छे विद्वान थे। वह ज्योतिष के भी अच्छे जानकार थे। लोग उनको जन्मपत्री दिखाने आते थे।

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घी वाली दाल और बाजरे के पुआ था बेहद पंसद

अटल जी की भाभी राजेश्वरी वाजपेयी बताती थीं कि साफ कपड़े पहनने की उनकी शुरू से आदत रही। वह बताती हैं कि अटल को मूंग दाल का पनेछा, करायल, गलरा और घी बघारी दालें बहुत पसंद हैं।

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RSS से था अनोखा लगाव

संघ से उनका ऐसा लगाव था कि वो यज्ञोपवीत के दिन भी खाकी नेकर और सफेद कमीज पहनकर गणवेश में लक्ष्मीगंज की शाखा में बौद्धिक में शामिल होने पहुंच गए थे। जनेऊ के समय भी वो वहींं मिले।

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पढ़ाई के दौरान बोलने लगे थे कनपुरिया भाषा

कानपुर में पढ़ाई के दौरान वो कनपुरिया बोलने लगे। झाड़े रहौ कलेक्टर गंज-‘कहो गुरु’-‘आवो पहलवान’ जैसे शब्द यूज करते थे। कानपुर की बोली, संस्कृति और साहित्य से उनका याराना हो गया था। 

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इन भाषाओं का भी करते थे प्रयोग

कन्नौजी, बैंसवारी शब्दों का प्रयोग अटल ने कानपुर प्रवास के बाद ही शुरू किया।

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यादें और प्रेरणा

अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन हमें सिखाता है कि साधारण व्यक्तित्व और असाधारण विचारों से दुनिया को बदला जा सकता है।  

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