MP के निमाड़ के आध्यात्मिक गुरु बाबा सियाराम का 110 वर्ष की उम्र में 11 दिसंबर को निधन हो गया। उनकी सेवा, विनम्रता और सादगी के लोग कायल हैं। यहां जानें बाबा के 11 अनसुने किस्से।
बाबा सियाराम का प्रारंभिक जीवन और आध्यात्मिक यात्रा मध्य प्रदेश के विशेष रूप से निमाड़ में शुरू हुई। कम उम्र में ही अध्यात्म में गहरी रुचि दिखाने के बाद वे एक प्रिय संत बन गए।
उनका नर्मदा नदी से गहरा लगाव था। बाबा सियाराम भगवान शिव के उपासक थे और उन्हें सबसे पवित्र मानते थे। नर्मदा के तट पर उन्होंने आत्मज्ञान और दिशा की खोज में कई घंटों तक ध्यान लगाया।
बाबा की शिक्षाओं में करुणा, प्रेम और निस्वार्थ सेवा पर ज़ोर दिया गया। उन्होंने अपने अनुयायियों से प्रकृति और ईश्वर से घनिष्ठ संबंध रखने का आग्रह किया, क्योकि वो सब को एक मानते थे।
बाबा ने निमाड़ आश्रम की स्थापना की, जो एक आध्यात्मिक आश्रम था, जहां गरीबों को भोजन, आश्रय और शिक्षा मिलती है। उन्होंने अपना जीवन जरूरतमंद लोगों को बेहतर बनाने में समर्पित कर दिया।
एक चमत्कारी बात यह है कि बाबा सियाराम बिना माचिस जलाये अपने हाथ से दीया जलाने में सक्षम थे।
बाबा ने 12 साल मौन व्रत रखा था। उनकी उत्पत्ति के बारे में कोई नहीं जानता। लोग बाबा को सियाराम बाबा इसलिए कहते थे क्योंकि उन्होंने मौन व्रत तोड़ते वक्त पहला शब्द सियाराम कहा था।
बाबा सियाराम प्रतिदिन 21 घंटे रामायण का पाठ करते थे। बिना चश्मे के भी वे रामायण पढ़ पाते थे।
संत सियाराम हमेशा लंगोटी पहने रहते थे, चाहे मौसम कैसा भी हो, चाहे ठंड हो, बारिश हो या फिर गर्मी। भक्तों के मुताबिक, बाबा ने दस साल तक तपस्या की।
बाबा आश्रम में आने वाले भक्तों से सिर्फ 10 रुपये ही लेते थे। सेवादार 10 रुपये ले लेता था और अगर कोई ज्यादा दान देता है तो बाकी रकम लौटा देता था।
सियाराम बाबा ने नर्मदा घाट के जीर्णोद्धार और रेन शेल्टर शेड बनाने के लिए 2 करोड़ 57 लाख रुपए दिए। उन्हें यह रकम आश्रम के डूब क्षेत्र के लिए भुगतान के तौर पर मिली थी। इसके अलावा
बाबा ने नागलवाड़ी धाम और खारघर इंदौर की सीमा पर जामगेट के पास विंध्यवासिनी मां पार्वती मंदिर में 25 लाख और अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण में भी 2 लाख रुपए भेंट किए थें।