महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में मुद्दों से ज्यादा नारों और नैरेटिव का बोलबाला। जानें 'राम, कृष्ण, हरी' से लेकर 'बंटेंगे तो कटेंगे' तक के नारों का राजनीतिक महत्व।
शरद पवार से लेकर देवेंद्र फडणवीस और राहुल गांधी तक, हर कोई नए नारों से मतदाताओं को प्रभावित करने में जुटा रहा। सभी प्रमुख राजनीतिक दल अपने-अपने पैंतरे आजमाए।
शरद पवार, जो कई बार सार्वजनिक रूप से अपनी नास्तिकता की बात स्वीकार चुके हैं, उनके चुनाव अभियान में राम, कृष्ण, हरी जैसे धार्मिक नारों की गूंज सुनाई दे रही है।
बारामती में भतीजे अजीत पवार के खिलाफ युगेंद्र पवार के प्रचार में पहुंचे शरद पवार और सुप्रिया सुले ने मंच से राम-कृष्ण-हरी का नारा दिया। जवाब में श्रोताओं ने बाजवा तुतारी कहकर दिया।
यह नारा राज्य के वारकरी संप्रदाय को आकर्षित करने की रणनीति मानी जा रही है। यह संप्रदाय हर साल पंढरपुर के विट्ठल मंदिर की यात्रा करता है, जिसमें वे राम, कृष्ण, हरी का जाप करते हैं।
बीजेपी का "बंटेंगे तो कटेंगे" और "एक हैं, तो सेफ हैं" जैसे नारे भी चर्चा में हैं। विपक्षी दलों और यहां तक कि बीजेपी के सहयोगी दलों ने भी इन नारों पर सवाल उठाए।
डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने इन नारों को इतिहास से जोड़ते हुए समर्थन दिया, जबकि राहुल गांधी ने "एक हैं, तो सेफ हैं" को अडाणी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जोड़ दिया।
राहुल गांधी की संविधान की लाल किताब को बीजेपी ने "रेड बुक" और "अर्बन नक्सल" से जोड़कर निशाना साधा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई।
विपक्ष ने गद्दार और खोखा शब्दों का जमकर इस्तेमाल किया। शिवसेना (UBT) ने एकनाथ शिंदे और उनके समर्थकों को गद्दार बताया, जबकि "50 खोखा" का इस्तेमाल उनके भ्रष्टाचार के आरोपों पर किया।
AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी पर "रजाकार" शब्द का उपयोग करते हुए बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने उन्हें रजाकारों का वंशज बताया।