मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान देवाताओं और राक्षस में युद्द हो गया था। राक्षसों ने अमृत का कलश अपने पास रख लिया।
कलश वापस लेने के लिए देवताओं ने इंद्र के बेटे को पक्षी के रूप में कलश लाने को भेजा। धोखे से उसने कलश चुरा लिया और स्वर्ग में छिप गया।
एक कथा के मुताबिक देवताओं ने राक्षसों से अमृत तो चुरा लिया लेकिन स्वर्ग ले जाते वक्त रास्ते में चार बूंदें छलक गई।
ये चार बूंदें पृथ्वी पर हरिद्वार, नासिक, प्रयागराज और उज्जैन में गिरी थी। और तभी से ये स्थान पवित्र हो गए।
अमृत कलश चुराने जयंत के साथ सूर्य,चंद्र, शनि और बृहस्पति और शनि गए थे। इन ग्रहों का स्थिती के मुताबिक ही तय होता है कि कुंभ कहा मनाया जाएगा।
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