रंग नहीं, यहां होली पर चलते हैं नुकीले हथियार! 500 साल पुरानी परंपरा
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रंग नहीं, यहां होली पर चलते हैं नुकीले हथियार! 500 साल पुरानी परंपरा

होली सिर्फ रंगों और गुलाल तक सीमित नहीं है!
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होली सिर्फ रंगों और गुलाल तक सीमित नहीं है!

मेरठ के बिजौली गांव में 500 साल पुरानी एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जिसे कहते हैं "तख्त यात्रा"। इसमें युवा नुकीले औजारों से खुद को बेधते हैं और गांवभर में जुलूस निकालते हैं।

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कैसे शुरू हुई तख्त यात्रा?
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कैसे शुरू हुई तख्त यात्रा?

राजा रणविजय सिंह के समय गांव में अकाल मृत्यु और आपदाएं बढ़ गई थीं। तब तपस्वी संत बाबा गंगापुरी ने यह परंपरा शुरू करवाई, जिसके बाद से गांव में शांति बनी हुई है।

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नुकीले औजारों से होती है यह परंपरा!
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नुकीले औजारों से होती है यह परंपरा!

युवाओं के शरीर में लोहे की नुकीली वस्तुएं आर-पार कर दी जाती हैं, लेकिन बाबा की कृपा से उन्हें कोई चोट नहीं लगती।

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गांवभर में निकाली जाती है तख्त यात्रा!

युवक देवी-देवताओं की वेशभूषा में तख्त पर खड़े होते हैं, और यह जुलूस पूरे गांव में घुमाया जाता है, जो अंत में बाबा गंगापुरी की समाधि पर जाकर संपन्न होता है।

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पूरे देश में चर्चित है ये परंपरा

हर साल यह परंपरा पूरे हर्षोल्लास के साथ निभाई जाती है। प्रशासन भी इसमें सहयोग करता है, जिससे यह आयोजन सुरक्षित और सफल हो सके।

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