पोप फ्रांसिस ने अमेरिका द्वारा बड़े पैमाने पर निर्वासन किए जाने की आलोचना की। कहा कि बल पर आधारित नीतियों का "बुरा अंत होगा"। उन्होंने प्रवासियों की "असीम गरिमा" पर जोर दिया था।
पोप फ्रांसिस LGBTQ+ समाज को स्वीकृति दी थी। कहा था, "यदि कोई समलैंगिक है और भगवान की तलाश करता है तो मैं कौन होता हूं न्याय करने वाला?"
पोप फ्रांसिस जलवायु संकट को प्रमुखता से उठाया था। Laudato Si (2015) में पर्यावरण संरक्षण को नैतिक कर्तव्य बताया और इकोसिस्टम को हो रही क्षति को गरीबी से जोड़ा था।
पोप फ्रांसिस मृत्युदंड दिए जाने के खिलाफ थे। उन्होंने पूरी दुनिया में इसे खत्म करने की वकालत की थी। इसे "जीवन की सुसंगत नैतिकता" का हिस्सा बताया था।
पोप फ्रांसिस ने फिर से विवाह करने वाले या तलाकशुदा लोगों के लिए संस्कारों पर प्रतिबंधों में ढील दी थी। उन्होंने पादरी देखभाल को प्राथमिकता दी थी।
पोप फ्रांसिस ने आर्थिक न्याय की बात की थी। उन्होंने गरीबों और असमानता के प्रति "उदासीनता के वैश्वीकरण" की निंदा की थी।
पोप फ्रांसिस ने चर्च में महिलाओं के अधिक नेतृत्व का समर्थन किया था। हालांकि उन्होंने प्रीस्टली ऑर्डिनेशन को खारिज कर दिया था।
पोप फ्रांसिस शांति के लिए मुसलमानों, यहूदियों और गैर-विश्वासियों के साथ सहयोग पर जोर दिया था।
पोप फ्रांसिस ने गर्भपात को "गंभीर पाप" कहा था। गरीबी और युद्ध से जीवन की रक्षा किए जाने की वकालत की थी।
पोप फ्रांसिस ने विकेन्द्रीकृत शासन को बढ़ावा दिया था। उन्होंने बिशपों से आम लोगों की आवाज सुनने का आग्रह किया था।