सार
बेरूत ने अपने इतिहास में तबाही और दर्द की सबसे खौफनाक तस्वीरें देखीं। सैंकड़ों मौतें हुईं, हजारों गंभीर रूप से जख्मी हुए और कल तक अपनी छतों के नीचे जिंदगी गुजर-बसर कर रहे तीन लाख लोगों को अचानक ही बेघर हो जाना पड़ा।
बेरूत। 20 लाख की आबादी वाले लेबनान के शहर बेरूत ने एक ऐसी गलती की सजा भुगती जिसके पीछे चिंदीचोरी, लालच, लापरवाही और खतरनाक इंटरनेशनल नेटवर्क का मकड़जाल है। एक ऐसा शहर जो पिछले सात साल से अपने सिरहाने रखे "टाइम बम" से बेखबर था और जब वो फटा तो बेरूत ने अपने इतिहास में तबाही और दर्द की सबसे खौफनाक तस्वीरें देखीं। सैंकड़ों मौतें हुईं, हजारों गंभीर रूप से जख्मी हुए और कल तक अपनी छतों के नीचे जिंदगी गुजर-बसर कर रहे तीन लाख लोगों को अचानक ही बेघर हो जाना पड़ा।
एक विस्फोट ने 15 अरब डॉलर से ज्यादा की संपत्ति का नुकसान किया। एक हफ्ते पहले तक खुश दिख रहा भरा-पूरा शहर अब खंडहर है। पहले से ही तमाम तरह के संकट से जूझ रहे लेबनान में ब्लास्ट के बाद राजनीतिक तस्वीर तेजी से बदल रही है। आपातकाल की घोषणा है। मगर हादसे के बाद लोगों का सरकार के खिलाफ गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है। शुक्रवार को लेबनान में बड़े पैमाने पर लोग संसद के बाहर आक्रामक प्रोटेस्ट कर रहे हैं।
इस घटना की वजह से लेबनान की सरकार भी संकट में आ गई है। प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सुरक्षाबलों को सख्ती से दखल देना पड़ रहा है। बेगुनाह मौतों से जुड़ी ये घटना ऐसी है जिसने दुनिया का भी ध्यान अपनी ओर खींचा है। गैरइरादन ही सही इस घटना के लिए जिम्मेदार कई बड़े किरदारों की भूमिका सामने आ रही है।
बेरूत ब्लास्ट के चार बड़े 'अपराधी' कौन?
बेरूत घटना के पीछे अबतक चार बड़े 'जिम्मेदार' सामने आ रहे हैं। अल जजीरा, वाशिंगटन पोस्ट समेत इंटरनेशनल मीडिया की तममा रिपोर्ट्स में रूस के कारोबारी Igor Grechushkin, रूस की सरकार, लेबनान की सरकार और आतंकी संगठन हिजबुल्ला की भूमिका बनती दिख रही है। हालांकि कुछ की भूमिकाएं भले ही गैरइरादन नहीं हैं लेकिन वो सवाल से बच नहीं सकते।
#1. रूसी कारोबारी की चिंदीचोरी
बेरूत में बर्बादी की नींव सात साल पहले 2013 में रूसी कारोबारी Igor Grechushkin की चिंदीचोरी से पड़ी थी। दरअसल, रूसी कारोबारी ने मोज़ाम्बिक की विस्फोटक बनाने वाली कंपनी से एक डील की थी जिसके तहत उन्हें 2750 मीट्रिक टन खतरनाक अमोनियम नाइट्रेट समुद्री रास्ते से पहुंचाना था। इस डील के लिए उन्हें 10 मिलियन डॉलर का भुगतान भी कर दिया था। मगर रूसी कारोबारी ने डील में चिंदीचोरी दिखाई। जिस जहाज एमवी रोसुस से माल भेजा गया वह काफी पुराना और जर्जर हालात में था। जहाज ले जा रहे क्रू को रास्ते का पर्याप्त खर्च भी नहीं दिया गया। यहां तक कि क्रू के पास खाने-पीने तक का संकट आ गया था। इसे दो बातों से समझा जा सकता है।
जहाज अपने तय रास्ते से मोज़ाम्बिक के लिए निकला। यात्रा के दौरान ग्रीस में फ्यूल भराया गया। लेकिन क्रू ने रास्ते के खर्च से कंपनी से पैसे मांगे जो उन्हें नहीं मिला। जो रास्ता तय था वो स्वेज़ नहर से होकर गुजरता। पर यह तभी संभव था जब स्वेज़ से गुजरने के लिए समुद्री कर दिया जाता। एमवी रोसुस के कैप्टन ने Boris Prokoshev ने रूसी मालिक से बार-बार पेमेंट मांगा, लेकिन उसे अनसुना किया गया।
बिना पैसे के समुद्र में दौड़ता रहा जहाज
बदले में खाने के खर्च के लिए भी परेशान क्रू को स्वेज़ का रास्ता बदलने और बेरूत जाने की सलाह मिली। कहा गया कि वहां मशीनरी का एक कार्गो है उसे जहाज पर लादकर बदले में मिलने वाले पैसे को यात्रा खर्च में इस्तेमाल करें। इस निर्देश के बाद मजबूरी में एमवी रोसुस को बेरूत के पोर्ट पर पहुंचना पड़ा। लेकिन जहाज की खराब हालत की वजह से ऐसा नहीं हो सका। कार्गो लोड ही नहीं हो पाया।
#2. रूस ने गंभीरता दिखाई होती तो टल जाता हादसा
विस्फोट के पीछे रूस की भी एक भूमिका सामने आती है। समय रहते रूस ने अगर दखल दिया होता तो शायद इस घटना से बचा जा सकता था। दरअसल, एमवी रोसुस बेरूत पोर्ट पर कार्गो नहीं लोड कर पाया और क्रू के पास पैसे भी नहीं थे कि वो पोर्ट का किराया देकर छुटकारा पाता। पोर्ट अथारिटी ने क्रू समेत समूचे जहाज को बंधक बना लिया। हालांकि कुछ समय बाद जहाज के कैप्टन और कुछ क्रू मेबारों के अलावा बाकी को छोड़ दिया गया। कारोबारी ने मदद नहीं की तो रूसी नागरिक की हैसियत से कैप्टन ने मामले में अपने देश रूस से मदद मांगी। दूतावास और प्रेसिडेंट ब्लादिमीर पुतिन को चिट्ठी लिखी गई। पर किसी ने भी मदद के लिए हाथ नहीं बढ़ाया।
जहाज का ईंधन बेचकर निकल पाया कैप्टन
आखिरकार कैप्टन ने जहाज में बचे ईंधन को बेंचा और वकील किया। अदालत ने भी नरमी दिखाई और इस वजह से 10 महीने से बंधक बने क्रू की रिहाई का आदेश मिला। हालांकि जहाज और विस्फोटक वहीं पड़े रहे। कप्तान की अपील पर अगर रूस ने सक्रियता दिखाई होती तो शायद दबाव के बाद कारोबारी को मदद के लिए आगे आना पड़ता और इस तरह हादसा टल सकता था।
#3. लेबनान सरकार ने खुद मुसीबत को गले में बांधा
बेरूत हादसे में जो सबसे बड़ी गलती है वो लेबनान सरकार की है। क्रू की रिहाई के बाद बेरूत पोर्ट ने किराया न चुका पाने की वजह से खतरनाक अमोनियम नाइट्रेट को अगस्त 2014 में बंदरगाह के हैंगर नंबर 12 में रखवा दिया। विस्फोट यहीं हुआ। जबकि पहले दिन से ही जहाज के कप्तान से लेकर कस्टम और बंदरगाह के बड़े अफसरों ने सरकार को अमोनियम नाइट्रेट के खतरे से आगाह किया था। केमिकल को बेचने, नीलाम करने या सुरक्षित डिस्पोजल की मांग भी की गई थी, लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया।
वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक इस बारे में लेबनान की ज्यूडिशियरी को भी कई बार चिट्ठियां लिखी गईं। सरकार ने नीलामी की बात तो कही- मगर कब, किसे और कैसे यह नहीं बताया। लोगों की मौत का सामान 2020 में विस्फोट होने तक हैंगर नंबर 12 में पड़ा रहा।
#4. तो इस मौत के सामान से हिजबुल्ला मचाना चाहता था तबाही
अब इस पूरे मामले में आतंकी संगठन हिजबुल्ला की भूमिका सामने आ रही है। कई इंटरनेशनल रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि यह हिजबुल्ला ही था जिसकी वजह से मौत का खौफनका सामान हैंगर नंबर 12 में पड़ा रहा। बताने की जरूरत नहीं कि हिजबुल्ला समेत तमाम आतंकी संगठन आतंकी गतिविधियों और दुनियाभर में बेगुनाहों की हत्या के लिए केमिकल का इस्तेमाल करते हैं। बेरूत पोर्ट पर काफी दबदबा रखने और इस रास्ते हथियारों की तस्करी करने वाले हिजबुल्ला ने चीन से भारी मात्रा में केमिकल लेने की कोशिश की थी जो संभव नहीं हो पाया। कई रिपोर्ट्स में साफ कहा जा रहा है कि हैंगर नंबर 12 में रखे विस्फोटक में हिजबुल्ला की दिलचस्पी की वजह से ही इसकी नीलामी नहीं हो पा रही थी।
लेबनान सरकार ने बार-बार आगाह किए जाने के बावजूद खतरनाक केमिकल को गोदाम में रहने दिया। यह सामने आ रहा है कि लापरवाही से रखे जाने की वजह से ही अमोनियम नाइट्रेट धीरे-धीरे डिकम्पोज और खतरनाक बनाता गया। नमी सोखने के साथ वह पत्थर की तरह सख्त होता गया और बेरूत पोर्ट पर 4 अगस्त को उसमें विस्फोट हो गया। ऐसा विस्फोट जिसके जख्म को बेरूत के लोग सालों नहीं भुला पाएंगे।