सार

अब तक अंतरिक्ष वैज्ञानिक (Space scientists) इस बात का पता लगाने की कोशिश में लगे हुए हैं कि चांद की सतह पर पानी हो सकता है या नहीं। करीब एक दशक पहले तक यह माना जाता था कि चांद की सतह पर पानी नहीं है, लेकिन अब नए रिसर्च से पता चल रहा है कि वहां पानी हो सकता है। 'नेचर एस्ट्रोनॉमी' (Nature Astronomy) में सोमवार को प्रकाशित दो स्टडी से पता चला है कि चांद पर पानी होने की संभावना है। 

पेरिस। अब तक अंतरिक्ष वैज्ञानिक (Space scientists) इस बात का पता लगाने की कोशिश में लगे हुए हैं कि चांद की सतह पर पानी हो सकता है या नहीं। करीब एक दशक पहले तक यह माना जाता था कि चांद की सतह पर पानी नहीं है, लेकिन अब नए रिसर्च से पता चल रहा है कि वहां पानी हो सकता है। 'नेचर एस्ट्रोनॉमी' (Nature Astronomy) में सोमवार को  प्रकाशित दो स्टडी से पता चला है कि चांद पर पानी होने की संभावना है। अगर ऐसा होता है तो भविष्य में चांद पर जाने वाले एस्ट्रोनॉट्स (Astronauts) को रिफ्रेशमेंट और फ्यूल की सुविधा मिल सकेगी।

NASA के वैज्ञानिकों ने की स्टडी
यह स्टडी नासा के वैज्ञानिकों ने स्ट्रैटोस्फेरिक ऑब्जर्वेटरी फॉर इन्फ्रारेड एस्ट्रोनॉमी (SOFIA) के एयरबोर्न टेलिस्कोप का इस्तेमाल करके की है। इससे मिले डेटा का उपयोग करते हुए रिसर्चर्स ने चांद की सतह को तीन के बजाय छह माइक्रोन वेवलेंथ पर स्कैन किया। इससे उन्हें वॉटर के मॉल्यूक्युल्स को स्पेक्ट्रल फिंगरप्रिंट से अलग कर पहचान करने में मदद मिली। हवाई इंस्टीट्यूट ऑफ जियोफिजिक्स एंड प्लैनेटोलॉजी (Hawaii Institute of Geophysics and Planetology) के साइंटिस्ट और स्टडी के को-ऑथर केसी होनिबल (Casey Honniball) ने यह कहा।

पहले के शोध में भी मिले थे संकेत
पहले हुए शोध में भी चांद की सतह पर पानी होने के संकेत मिले थे, लेकिन इनमें पानी (H2O) और हाइड्रोक्सिल के बीच अंतर कर पाना संभव नहीं हो सका था। यानी एक हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बने एक अणु की पहचान नही हो सकी थी। लेकिन नए अध्ययन से रासायनिक प्रमाण मिलता है कि चंद्रमा पर एटॉमिक रूप में पानी मौजूद है, खासकर सूरज की रोशनी वाले क्षेत्रों में। 

क्या कहना है शोधकर्ताओं का 
नासा के वैज्ञानिकों की परिकल्पना के अनुसार चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद बर्फ से एक दिन के लिए पीने के पानी की आपूर्ति की जा सकती है। शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि पानी क्रिस्टल्स रूप में मौजूद है। साइंटिस्ट होनिबल ने एएफपी (AFP) को बताया कि आगे किए जाने वाले अध्ययनों और प्रेक्षणों से यह समझने में मदद मिलेगी कि पानी कहां से आया होगा और इसे कैसे संग्रहीत किया जा सकता है। उन्होंने कहा, "अगर हम पाते हैं कि पानी कुछ स्थानों पर पर्याप्त मात्रा में है, तो हम इसे शोध के लिए एक संसाधन के रूप में उपयोग करने में सक्षम हो सकते हैं।" होनिबल का कहना है कि इसका उपयोग पीने के पानी, सांस लेने के लिए ऑक्सीजन और रॉकेट ईंधन के रूप में भी किया जा सकता है।

इससे पहले स्टडी में क्या चला था पता
इसके पहले एक अध्ययन में पाया गया था कि चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों बर्फ ऐसे क्रेटर्स (craters) में फंसा है, जहां कभी भी सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती। नासा के वैज्ञानिकों ने 2009 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास एक गहरे गड्ढे में पानी के क्रिस्टल पाए थे। लेकिन नए अध्ययन में अरबों माइक्रो क्रेटर्स के प्रमाण मिले हैं। इससे यह संभावना पैदा हुई है कि बर्फ को पानी में बदला जा सकता है।