सार
फाल्गुन पूर्णिमा (Falgun Purnima 2022) को होलिका दहन (Holika Dahan 2022) करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसके दूसरे दिन अबीर-गुलाल से होली (Holi 2022) खेली जाती है। लोग एक-दूसरे को बधाई देते हैं और गले लगते हैं। ये त्योहार हिंदू धर्म की खूबसूरती को दर्शाता है।
उज्जैन. होली का त्योहार भारत के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न परंपराओं के साथ मनाया जाता है। ऐसी ही एक परंपरा मथुरा (Mathura) के नजदीक स्थित फालैन गांव (Phalan Village) भी निभाई जाती है, जो लोगों को हैरान कर देती है। यहां होलिका दहन की रात मंदिर का पंडा जलती हुई अग्नि में से निकलता है और उसे कुछ भी नहीं होता। इस अद्भुत दृष्य को देखने के लिए देश-विदेश के लोग यहां आते हैं। फालैन को भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद (Bhakta Prahlad) का गांव कहा जाता है।
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जानिए क्या है ये परंपरा…
फाल्गुन पूर्णिमा की रात जब होलिका दहन किया जाता है तो फालैन और आस-पास के गांव के लोग हजारों कंडे लेकर यहां आते हैं और करीब 25-30 फीट चौड़ी और 10-12 फीट ऊंची होलिका कंडों से तैयार की जाती है। रात को जब होलिका जलाई जाती है तो शुभ मुहूर्त में पंडा जी जलती होली में से निकलते हैं। वर्तमान में मोनू पंडा इस परंपरा को निभा रहे हैं, वे 10 बार जलती हुई होली में से निकल चुके हैं। हैरानी की बात ये है कि जलती होली में से निकलने वाले पंडा का बाल भी नहीं जलता है। इसके पहले पंडाजी कठिन नियमों का पालन करते हैं और विशेष मंत्रों का जाप भी करते हैं।
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लोग इसे कहते हैं भक्त प्रह्लाद का गांव
मान्यता है कि फालैन गांव दैत्यराज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद का है। इसको लेकर एक कथा ये है कि प्राचीन समय में पुजारी को सपना आया कि एक पेड़ के नीचे भगवान की मूर्ति दबी हुई है। संत के मार्गदर्शन में पंडा परिवार ने उस स्थान खुदाई की तो भगवान नृसिंह और भक्त प्रहलाद की मूर्ति मिली। ये देख संत ने पंडा परिवार को आशीर्वाद दिया कि हर साल होली पर इस परिवार का जो भी व्यक्ति पूरी आस्था से भक्ति करेगा, उसे भक्त प्रहलाद की विशेष कृपा मिलेगी और वह जलती हुई होली से निकल सकेगा। गांव में भक्त प्रहलाद का मंदिर है और यहां एक कुंड भी है।
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