सार

हिंदू पंचांग के अनुसार, एक साल में कुल 6 ऋतुएं होती हैं, लेकिन आम लोग 4 के बारे में ही जानते हैं। पंचांग में बताई गई सभी 6 ऋतुओं का का अलग-अलग महत्व है। इस बार शिशिर ऋतु की शुरूआत 22 दिसंबर, गुरुवार से हो चुकी है। 
 

उज्जैन. हिंदू धर्म के अंतर्गत बनाई गई व्रत-त्योहारों की परंपरा पूरी तरह से वैज्ञानिक है, इसमें ऋतुओं का ध्यान भी रखा गया है। किस ऋतु में कौन-सा पर्व मनाया जाना चाहिए, ये बात हमारे पूर्वज पहले से जानते थे। हिंदू पंचांग में 6 ऋतुओं के बारे में बताया गया है, ये हैं ऋतुएं हैं- वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शिशिर। इस बार शिशिर ऋतु की शुरूआत 22 दिसंबर, गुरुवार से हो चुकी है जो 21 मार्च 2023 तक रहेगी। आगे जानिए क्यों खास है शिशिर ऋतु और इससे जुड़ी खास बातें…

इसलिए खास है शिशिर ऋतु
आम तौर पर लोग शीत ऋतु के बारे में अधिक जानते हैं, लेकिन इस ऋतु को हमारे ऋषि-मुनियों ने दो हिस्सों में बांटा है- हेमंत और शिशिर। धर्मग्रंथों में बताए गए व्रत-पर्व और परंपराएं इन ऋतुओं को ध्यान में रखकर ही बनाए गए हैं, जो सेहत के लिए भी फायदेमंद हैं। शिशिर ऋतु के दौरान मकर संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल, तिल चतुर्थी आदि पर्व मनाए जाते हैं। इस दौरान तिल-गुड़ खाने पर ज्यादा जोर दिया जाता है, क्योंकि इस समय ये चीजें सेहत के लिए फायदेमंद होती हैं।

उत्तरायण में आती है शीत ऋतु
शिशिर ऋतु के दौरान सूर्य धनु, मकर और कुंभ राशियों में रहता है। मकर और कुंभ शनि की राशियां हैं। इस दौरान सूर्य दक्षिण ध्रुव से उत्तर ध्रुव की ओर गति करता है। इस समय उत्तरायण का पर्व भी मनाया जाता है। इस बार शीत ऋतु की शुरुआत मूल नक्षत्र में हुई है। इस नक्षत्र के स्वामी केतु होने से देश के उत्तरी हिस्सों में मौसमी बदलाव होने की संभावना बन रही है। देश के कई हिस्सों में तेज ठंड और बर्फबारी होने की आशंका भी है।

सूर्य पूजा और दान का महत्व
शिशिर ऋतु के दौरान पौष और माघ महीना रहता है। इस समय ठंड अपने चरम पर होती है, इस दौरान सूर्य पूजा का विशेष महत्व धर्म ग्रंथों में बताया गया है। साथ ही इस समय दान करने की परंपरा भी हमारे पूर्वजों ने बनाई है। इस समय तिल-गुड़ से बने व्यंजन विशेष तौर पर खाए और दान किए जाते हैं। इस परंपरा को वैज्ञानिक नजरिये से देखा जाए तो इन दिनों में कैल्शियम की कमी दूर करने के लिए तिल और गुड़ से बनी चीजें खाई जाती हैं। सूरज की किरणों में विटामिन डी होता है। इसलिए ठंड के दिनों में सुबह जल्दी धूप में यानी सूरज के सामने खड़े होकर पूजा की जाती है।


 

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