सार

Joshimath Narasimha Temple: उत्तराखंड का जोशीमठ हिंदुओं की आस्था का केंद्र हैं क्योंकि यहां कई प्राचीन मंदिर हैं। इनमें से नृसिंह बदरी का मंदिर भी एक है। इस मंदिर से कई कथाएं जुड़ी हैं। कहां जाता है कि स्वयं आदि गुरु शंकराचार्य ने इस मंदिर की स्थापना की थी। 
 

उज्जैन. इन दिनों उत्तराखंड का तीर्थ स्थल जोशीमठ बहुत चर्चाओं में है। ये ऊंची पहाड़ियों पर स्थित है। पिछलों कुछ दिनों से यहां बने मकानों में लगातार दरारे आ रही हैं, जिसके चलते लोगों को यहां से दूसरी जगह ले जाया जा रहा है। इस स्थान पर कई प्राचीन मंदिर हैं, जिनसे कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। ऐसा ही एक मंदिर है भगवान नृसिंह (Joshimath Narasimha Temple) का। जब शीत ऋतु में बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं तब यही भगवान के दर्शन किए जाते हैं, इसलिए इसे नृसिंह बदरी मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर से जुड़ी एक मान्यता है, जो जोशीमठ के अस्तित्व से जुड़ी है। जानिए इस मान्यता और कथा के बारे में…

यहां दर्शन किए बिना अधूरी होती है बद्रीनाथ की यात्रा
आदि गुरु शंकराचार्य भगवान नृसिंह को अपना इष्टदेव मानते थे। जब वे यहां आए तो उन्होंने भगवान नृसिंह के इस मंदिर की स्थापना यहां की। शीत ऋतु में जब मूल बद्रीनाथ मंदिर बंद कर दिया जाता है, उस समय उनके दर्शन यहां किए जा सकते हैं। इसलिए इस मंदिर को नृसिंह बदरी मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ धाम की यात्रा संपूर्ण नहीं मानी जाती है। 

ये है इस मंदिर से जुड़ी मान्यता
इस मंदिर में भगवान नृसिंह की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है, जिसकी दाईं ओर की भुजा पतली है। यह भुजा हर साल धीरे-धीरे और पतली होती जा रही है। मान्यता है कि जिस दिन भगवान नृसिंह की ये भुजा टूटकर गिर जाएगी, उस दिन इस स्थान पर तबाही आ जाएगी। यहां स्थित नर और नारायण नाम के पहाड़ आपस में मिल जाएंगे, ये दृश्य किसी प्रलय से कम नहीं होगा। तब जोशीमठ के तपोवन क्षेत्र में ही भविष्य बद्री मंदिर में भगवान बद्रीनाथ के दर्शन होंगे। 

ये है पौराणिक कथा (Joshimath Narasimha Temple Katha)
- पौराणिक कथाओं के अनुसार, किसी समय इस स्थान पर वासुदेव नाम का एक राजा था। एक दिन जब वह शिकार खेलने जंगल में गया तो उसी दौरान भगवान नृसिंह पुरुष रूप में महल में आए और उन्होंने रानी से भोजन करने की इच्छा प्रकट की। 
- भगवान को सामने पाकर महारानी ने आदर पूर्वक उन्हें भोजन करवाया और राजा के कमरे में उनसे आराम करने कहा। जब राजा शिकार से लौटा तो उसने देखा कि उसके बिस्तर पर कौई और पुरुष सोया है, ये देखकर उसे बहुत क्रोध आया उसने तलवार से उस पर वार कर दिया। 
- जैसे ही तलवार भगवान नृसिंह की दाहिनी भुजा पर लगी तो वहां से खून के स्थान पर दूध बहने लगा। तभी भगवान अपने वास्तविक रूप में आ गए। राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे माफी मांगने लगे। 
- तब भगवान नृसिंह ने कहा कि ‘तुमने जो गलती की है, उसके लिए तुम्हें ये स्थान छोड़ना होगा। तुमने जो प्रहार मुझ पर किया है,  उसके प्रभाव से मंदिर में स्थित मेरी मूर्ति की एक भुजा पतली होती जाएगी और जिस दिन ये टूट जाएगी, उस दिन तुम्हारे वंश का अंत हो जाएगा।


 

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