सार

Khet Singh Khangar Jayanti 2022: हमारे देश में कई किले हैं जिनके साथ रहस्यमयी कथाएं जुड़ी हुई हैं। ऐसा ही एक किला बुंदेलखंड के टीकमगढ़ में भी है। इसे गढ़कुंडार का किला कहा जाता है। कभी ये किला खंगार राजवंश का मुख्य केंद्र था।
 

उज्जैन. अंग्रेजों के आने से पहले अनेक राजवंशों ने मुगलों से युद्ध करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया। इनमें से कुछ के बारे में भी काफी कुछ लिखा और पढ़ा गया, वहीं कुछ इतिहास के अंधेरों में दबे रहे गए। (Khet Singh Khangar Jayanti 2022) खंगार राजवंश भी इनमें से एक है। खंगार साम्राज्य कितना समृद्धि और विशाल था, इस बात का अंदाजा मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में स्थित गढ़कुंडार के किले को देखकर लगाया जाता है। ये किला इतना विशाल है कि इसमें कई सेनाएं समा जाएं। इस किले में खंगार समाज की कुलदेवी मां गजानन का प्राचीन मंदिर भी है। इस किले से कई कथाएं जुड़ी हैं। आज हम आपको इस किले, मां गजानन के मंदिर और खंगार राजाओं के बारे में बता रहे हैं…

कौन थे राजा खेतसिंह खंगार? (Who was Raja Khet Singh Khangar?)
इतिहासकारों के अनुसार, सन 1182 में सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने राजा परमार्दि देव को हराकर उत्तर प्रदेश के महोबा पर कब्जा कर लिया। यहां आकर उनकी नजर मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ में बने गढ़कुंडार के इस किले पर पड़ी। इस किले का निर्माण चंदेल राजा यशोवर्मन ने नौवीं सदी में बनवाया था। सम्राट पृथ्वीराज ने इस पर भी अधिकार कर लिया और अपने खास सेनापति खेतसिंह खंगार को गढकुंडार का किलेदार बना दिया। पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु के बाद खेतसिंह खंगार ने खुद को गढ़कुंडार का राजा घोषित कर दिया और खंगार राजवंश की नींव रखी। इस वंश की चार पीढ़ियों ने गढ़ कुंडार पर शासन किया। राजा खेतसिंह खंगार की जयंती प्रतिवर्ष 27 दिसंबर को मनाई जाती है। 

क्यों खास है ये गढ़कुंडार का किला?
गढ़कुंडार किले को लेकर कई कई मान्यताएं हैं। 11वीं सदी में बना यह किला पांच मंजिल का है, जिसमें तीन मंजिल तो ऊपर दिखते हैं, जबकि दो मंजिल जमीन के नीचे हैं। हर साल यहां राजा खेतसिंह खंगार की जयंती पर विशेष आयोजन किए जाते हैं। किले की डिजाइन इस तरह बनाई गई है कि कोई भी व्यक्ति सीधा यहां तक नहीं पहुंचा सकता और अगर आ जाए तो भ्रमित हो जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि एक बार यहां कुछ लोग घूमते-घूमते तल मंजिल तक पहुंच और गए और इसके बाद उनका कुछ पता नहीं चला। इसी किले में खंगार राजकुमारी केसर ने जौहर कर अपने प्राणों का बलिदान दिया था। आज भी इनके बलिदान की बातें यहां की लोकगायन में सुनने की मिलती है।
 
खंगार समाज की कुलदेवी हैं मां गजानन
गढ़कुंडार किले में ही खंगार समाज की कुलदेव मां गजानन का प्राचीन मंदिर है। देवी का वाहन हाथी और शेर है। देवी की 6 भुजाएं हैं, जिसमें उन्होंने अस्त्र-शस्त्र धारण किए हुए हैं। जब राजा खेतसिंह ने इस किले पर अधिकार तब उन्होंने यहां देवी गजानन का मंदिर भी बनवाया। देवी की प्रतिमा काले पत्थर के निर्मित है। कहा जाता है कि जब मुगलों ने इस किले पर हमला किया तो काफी प्रयास के बाद भी वे इसे जीत नहीं पाए। तब किसी के कहने पर मुगलों ने किले पर गाय का रक्त का छिड़काव करवा दिया। इससे ये स्थान अपवित्र हो गया और देवी गजानन इस स्थान को छोड़कर चली गई। इसके बाद इस किले पर मुगलों का कब्जा हो गया।


 

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