सार

कुछ लोग हमेशा दूसरों पर आश्रित रहते हैं जबकि वे शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से सक्षम होते हैं। लेकिन उनका आलस्य उन्हें दूसरों पर निर्भर बना देता है। ऐसे लोग यही सोचते हैं भगवान ही हमारा ध्यान रखेगा।
 

उज्जैन. कुछ लोग हमेशा ये सोचते हैं कि जब भगवान सभी का ध्यान रखता है तो उनके लिए भी कुछ न कुछ तो करेगा ही। लेकिन उनकी ये सोच पूरी तरह से गलत होती है। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है कि हमें दूसरों की मदद लेने के स्थान पर मदद करने के बारे में सोचना चाहिए। तभी हमारा जीवन सार्थक हो सकता है।

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जब युवक ने जंगल में देखा एक अजीब नजारा
गांव में रहने वाला एक युवक भोजन बनाने के लिए जंगल से लकड़ियाँ चुन रहा था तभी उसने देखा कि एक लोमड़ी, जिसका एक पैर नहीं था, पेड़ के नीचे बैठी थी। पैर न होने के कारण वो चलने-फिरने में असमर्थ थी, लेकिन फिर भी वो पूरी तरह से स्वस्थ दिख रही थी।
तभी उस युवक को शेर के दहाड़ने की आवाज आई। युवक डरकर पेड़ पर छिपकर बैठ गया। उसने देखा कि शेर लोमड़ी के पास आ गया। युवक को लगा कि अब शेर लोमड़ी को खा जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। शेर ने अपने मुंह से दबे मांस में से थोड़ा हिस्सा लोमड़ी के आगे डाल दिया।
युवक को समझ आ गया कि शेर इसी तरह लोमड़ी के लिए खाना लेकर आता होगा, तभी इस अवस्था में भी वो पूरी तरह से स्वस्थ है। युवक ने सोचा कि भगवान हर प्राणी के लिए भोजन की व्यवस्था करता है, ये बात पूरी तरह से सच है।
ये बात मन में आते ही युवक ने सोचा कि अब से मैं भी कुछ काम नहीं करूंगा, भगवान मेरे लिए भी भोजन की व्यवस्था करेगा। ऐसा सोचकर युवक अपने घर जाकर बैठ गया। एक दिन बीता पर कोई नहीं आया। दूसरा दिन भी इसी तरह निकल गया। अब भूख के मारे उसकी जान निकलने लगी। लेकिन भगवान के प्रति उसका विश्वास अटूट था। इसी तरह तीसरा दिन भी निकल गया। अब उसकी हालत बिगड़ने लगी। 
युवक ने घर में भोजन पकाया और खाया। इसके बाद वो घर से बाहर निकला। सामने उसे एक महात्मा आते दिखाई दिए। उसने पूरी बात महात्मा को बताई और पूछा कि “जब भगवान उस लोमड़ी के लिए भोजन भेज सकते हैं तो उन्होंने मेरे लिए खाने का प्रबंध क्यों नहीं किया।”
महात्मा बोले “ लोमड़ी असहाय थी, चल-फिर नहीं सकती थी, जबकि तुम पूरी तरह से स्वस्थ हो। भगवान तुम्हें लोमड़ी नहीं बल्कि शेर बनाना चाहता है, ताकि तुम भी लोगों की मदद कर सको।”
युवक को महात्मा की बात समझ आ चुकी थी।

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निष्कर्ष ये है कि…
अक्सर लोग समर्थ होते हुए भी दूसरों से मदद की उम्मीद रखते हैं। जबकि वे खुद भी वो काम कर सकते हैं। इसका कारण है वे स्वयं को असहाय समझते हैं और अपनी शक्तियों के बारे में नहीं जानते। इसलिए दूसरों से मदद लेने की जगह दूसरों की मदद करने के बारे में सोचना चाहिए।

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